________________
१७०
दान और मृत्युपत्र
[सोलहवां प्रकरण
आशाथी कि उसके पश्चात् दत्तक पुत्रको वह मिलेगी. नाजायज़ और बेअसर माना, गया 12 Bom. L. R. 910; 8 Ind. Cuses 625. दफा ८०० दानका मंसूख होना
मरे हुएको दान देना नाजायज़ है-हिन्दुलॉके अनुसार ऐसे व्यक्तिको दान देना, जिसका अस्तित्त्व न हो, नाजायज़ है । दानको जायज़ करने के लिये कब्जेके देने की ज़रूरत है। भगवानसिंह बनाम किरपाराम 83 I. C. 226; A. I R. 1925 Lah. 648.
हिन्दूलॉके अनुसार जब दान देने वालेने वे सब काम कर डाले हो जो जायज़दान देने के लिये उसके अधिकारमें हों और दान का लाभ भी देदिया हो तो वह दान पूरा माना जायगा और पीछेके वसीयत लिखनेसे मंसूख नहीं होगा देखो-23 Bom. 1317 6 Mad. 319. और जबकि दानकी पूरी तकमील नेकनीयतीसे कर दी गयी हो तथा लेनदारोंका रुपया मारने या किसी जालसाज़ी आदिके इरादेसे वह दान न किया गया हो तो वह कभी मंसूख नहीं हो सकता हर हालतमें जायज़ है चाहे वह लेनदारों के विरुद्ध भी हो, देखो-6 All. 560; 11 I. A. 164; 23 Cal. 15; 21 I. A. 163.
___12. Bom. L. R. 910; 8. Ind. Cases 625. वाले मामलेमें माना गया कि हिन्दुलॉका यह बड़ा भारी सिद्धान्त है कि जब एक दफा दानदे दिया जाय तो फिर वह कभी मंसूख नहीं हो सकता (जब दान एक दफा दे दिया जाय तो फिर दान देने वाला या उसकी सतान या राजा, या कोईभी दुसरा आदमी मंसूख नहीं कर सकता यह बात चतवर्गचिन्तामणि ग्रन्थके दान प्रकरणमें विस्तारसे कही है ) यह सिद्धांत दान देने और लेने वालेके बीच में माना जाता है लेकिन इसका असर मुश्तरका खानदानकी मौरूसी जायदाद पर नहीं पड़ता इस लिये मुश्तरका खानदानका बाप बिना अपने पुत्रादिकी मंजूरी लिये खानदानकी मौरूसी जायदादको दानमें नहीं दे सकता। यहांपर यह ध्यान रखना चाहिये कि कलकत्ता और मदरास हाईकोर्टीके फैसलोंके अनुसार वह मुश्तरका खानदानकी स्थावर जायदाद का थोड़ा सा उचित भाग अपनी विवाहिता लड़कियों को दे सकता है यद्यपि यह बात स्पष्ट रूपसे बम्बई और इलाहाबाद हाईकोर्ट नहीं मानते।
मगर ऐसे दान जिनके सम्बन्धोंसे ज़ाहिर होताहो कि कन्ट्राक्ट नाजायज़ था मंसूख हो सकते हैं जैसे किसी ग़लती जालसाज़ी या ज़बरदस्ती आदि सावित होनेसे मंसूख हो जाते हैं। देखो-27 P. R. 1866%B | M. H. C. 393, जिस दानमें वास्तवमें दान देने वालेके साथ जालसाज़ीकी गई हो अथवा इसी तरहके कोई ऐसे काम किये गये हों जिन्हे दान देने वाला दान देनेके वक्त तक नहीं जानता था तो ऐसी सूरतमें दान ज़रूर मंसूखहो जायगा;