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दफा ७७१]
बेनामी क्या है
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बाद और बम्बई हाईकोर्टीकी नज़ीरोंके अनुसार यद्यपि 'ख' बेनामीदार है तिसपर भी वह दावा करनेका अधिकारी है। लेकिन कलकत्ता और मदरास हाईकोर्टीकी मज़ीरों के अनुसार 'ख' ऐला दावा करनेका अधिकारी नहीं है, बल्कि 'क' है। लेकिन अगर 'ग' ऐसा उजुर पेश न करे तो जो डिकरी उस मुकदमे में होगी वह 'ग' और 'क' दोनोंको बराबर पाबन्द करेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट धेमामीदारको अपने नामसे कब्जेका दावा करने का हकदार इस लिये मानती है कि उसकी रायमें बेनामीदार जाहिरा तौरसे कानूनी हक रखता है और मुहालेह 'ग' को कोई अधिकार नहीं है कि वह यह उजुर पेश करे कि मुद्दई 'ख' असली मालिक नहीं है, देखो-नन्दकिशोर बनाम अहमदअता ( 1895 ) 11 All. 69-76, लेकिन कलकत्सा हाईकोर्टकी राय इसके बिलकुल विरुद्ध है। उसका कहना है कि बेनामीदार बह आदमी है कि जायदाद सिर्फ जिसके नाम पर है। मगर उस जायदादमें उसका कोई कानूनी हक नहीं है देखो-महेन्द्रनाथ बमाम कालीप्रसाद 30 Cal. 265-272.