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________________ न मालूम किस जन्म में कौन-सा कर्म किया है, इस कुत्ते के साथ कौन-सा दुर्व्यवहार किया था कि मैं ध्यान करने बैठता हूं तब इन सज्जन को भौंकने की याद आयी है। अब कभी और भौंक लेते, चौबीस घंटे पड़े हैं। तुम ध्यान करने बैठे कि बच्चा रोने लगा। तुम्हें बड़ी हैरानी होती है कि बच्चे को पता कैसे चल जाता है कि जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तभी रोने लगता है। अबोध बच्चा, झूले में पड़ा हो, वह रोने लगता है। यह तुम्हारे लिए नहीं रो रहा है। लेकिन अभी तुम ध्यान करने बैठे, तुमने एक चुनाव कर लिया कि मैं एकाग्र रहूंगा। एकाग्रता के कारण ही विक्षेप पैदा हो रहा है। तुमने चाहा एकाग्र रहूंगा; और इस जगत में हजारों घटनाएं घट रही हैं! सड़क पर तांगे-घोड़े दौड़ रहे, कारें आवाज कर रहीं, ट्रक जा रहे, हवाई जहाज उड़ रहे, पत्नी चौके में खाना बना रही, बर्तन गिर रहे, बच्चे रो रहे, शोरगुल बच्चे कर रहे, कुत्ते भौंक रहे, कौवे चिल्ला रहे-सब तरफ हजार-हजार चीजें हो रही हैं। तुमने जैसे ही तय किया कि मैं ध्यान में बैलूंगा, अब मैं कोई अपने मन में विकल्प न आने दूंगा, अपने मन में किसी चीज से बाधा न पड़ने दूंगा, निर्बाधा घड़ी भर बैलूंगा-बस बाधा आनी शुरू हो गई! कैसे बाधा आ रही है? अष्टावक्र कहते हैं : उसने निर्बाधा रहने का जो तय किया, उससे आ रही है। इसलिए अष्टावक्र एकाग्रता के पक्षपाती नहीं हैं, न मैं हूं। एकाग्रता का मेरा कोई पक्षपात नहीं। एकाग्रता अहंकार का ही फैलाव है। और वास्तविक ध्यान का एकाग्रता से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि एकाग्रता से तो विक्षेप पैदा होता है, डिस्टेक्शन पैदा होता है। इससे तो और अशांति बढती है। फिर ध्यान का क्या अर्थ है? साधारण किताबों में उन लोगों ने जो किताबें लिखी हैं, जिन्होंने ध्यान को बिलकुल जाना नहीं—तुम यही पाओगे, वे लिखते हैं : ध्यान यानी एकाग्रता। उन्हें कुछ भी पता नहीं है। उन्हें क, ख, ग भी पता नहीं है। ध्यान यानी एकाग्रता! बिलकुल नहीं, कभी नहीं, हजार बार नहीं! ध्यान का अर्थ ही होता है : विक्षेपरहितता। एकाग्रता तो कैसे हो सकता है? एकाग्रता का तो अर्थ होगाः विक्षेप पैदा हुए। ___ ध्यान का अर्थ होता है : अनेकाग्र। ध्यान का अर्थ होता है : जो होगा होने देंगे। बच्चा रोयेगा, रोने देंगे। कुत्ता भौंकेगा, भौंकने देंगे। हम हैं कौन बाधा डालनेवाले? इस विराट अस्तित्व में हम विराम लगानेवाले कौन हैं? मैं कौन हूं जो कहूं कि कुत्ता अभी न भौंके और कौवे अभी कांव-कांव न करें और बच्चे अभी रोयें नहीं, गाड़ियां अभी रास्ते पर न चलें, हवाई जहाज आकाश में न उड़ें? मैं कौन हूं विराम लगानेवाला? यह तो बड़े अहंकार की घोषणा है कि मैं विराम लगा दूं। नहीं, मैं कोई भी नहीं हूं! जो होगा मैं उसे स्वीकार करूंगा। कुत्ता भौंकता रहेगा, मैं राजी रहूंगा। कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनाई पड़ेगी, गूंजेगी मेरे अंतस्तल में, सुनता रहूंगा, लेकिन मेरा चूंकि कोई विरोध नहीं है तो विक्षेप पैदा नहीं होगा। मेरी कोई मांग नहीं है कि कुत्ता न भौंके, तो मुझे कोई चोट न लगेगी। जैसे ही तुमने एकाग्र होना चाहा कि तुमने घाव बना लिया। देखा तुमने, कभी पैर में घाव हो जाता है तो दिन भर उसी पर चोट लगती है। बच्चा आकर पैर पर चढ़ जाता है। तुम चकित होते हो कि इतने दिन हो गये, जिंदगी हो गई, कभी यह बच्चा पैर पर नहीं चढ़ता था, आज पैर पर चढ़ गया! राह से निकलते हो. किसी का धक्का लग जाता है। दरवाजे का धक्का लग जाता है। चीजें गिर पडती हैं। ये रोज ही गिरती थीं और यह बच्चा अनेक बार चढ़ा था; लेकिन कभी पता न चला था, क्योंकि घाव न एकाकी रमता जोगी 85
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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