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दूसरा प्रश्नः जब कोई व्यक्ति अपने जीवन को किसी दिशा विशेष में ले चलने की कोशिश करता है तो इतर दिशाओं का बुलावा विक्षेप बन जाता है। लेकिन क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति अपने जीवन को उसकी सभी य | ह प्रश्न स्वाभाविक है, उठेगा ही; दिशाओं में बहने को छोड़ दे और तब क्या | एक न एक दिन प्रत्येक के सामने विक्षेपरहितता की अवस्था में जीवन के खड़ा होगा ही। अब तक तुम चुनकर जीये हो। बिखराव का खतरा नहीं खड़ा होगा? जो तुमने चुन लिया है, उससे एक दिशा मिल
जाती है; बाकी सब दिशाएं छूट जाती हैं। जो
तुमने चुना है उससे तुम्हें अपनी परिभाषा मिल जाती है। तुम्हें पता चल जाता है कि मैं कौन हूं। अगर तुम सत्य को खोज रहे हो तो तुम सत्यार्थी। अगर तुम ध्यान को खोज रहे हो तो ध्यानी। अगर धर्म की यात्रा पर निकले हो तो धार्मिक। अगर पुण्य कर रहे हो तो पुण्यात्मा। एक परिभाषा मिलती है दिशा से। कुछ चुन लिया, चुनाव के साथ ही साथ तुम्हें लगता है कि तुम कुछ हो। स्पष्ट प्रतीत होने लगता है। और तुम्हारे चुनाव के कारण तुम्हारा अहंकार सघन होता है। इससे खतरा पैदा होगा।
जब अष्टावक्र कहते हैं, चुनाव ही छोड़ दो, सारे चुनाव छोड़ दो, सारा कर्तृत्व छोड़ दो, कर्ता का भाव छोड़ दो, तो तुम घबड़ाओगेः 'इससे बिखराव तो न पैदा हो जायेगा?' बिखराव पैदा होगा। अहंकार के तल पर निश्चित होगा। क्योंकि अहंकार के तल पर तो बिखराव चाहिए ही। ___ अभी तुमने जिसको आत्मा कहा है, वह तुम्हारी आत्मा नहीं, वह तो तुम्हारे कर्मों, चुनावों का जोड़ है, अहंकार है। अहंकार तो बिखरेगा। अगर तुम सब दिशाओं में अपने को मुक्त छोड़ दो, स्वच्छंद-वही तो देशना है अष्टावक्र की स्वच्छंद! मत चुनो, मत भविष्य का विचार करो। मत तय करो कि क्या होना है! जीयो क्षण-क्षण। जहां ले जाये जीवन वैसे जीयो। सूखे पत्ते की तरह हो जाओ अंधड़-आंधी में। यह जो जीवन का अंधड़ चल रहा है, इसमें तुम सूखे पत्ते हो जाओ। अब सूखे पत्ते को तो बिखराव होगा ही। सूखे पत्ते का अहंकार बच तो सकता ही नहीं। सूखा पत्ता जा रहा था पूर्व को और आंधी बहने लगी पश्चिम को-तो सूखे पत्ते के अहंकार का क्या होगा? और सूखा पत्ता तड़पेगा ः 'यह तो गलत हो रहा है! जो नहीं चाहिए था, वह हो रहा है ! मैं कुछ और चाहता था। यह तो असफलता हो रही है, यह तो विषाद का क्षण आ गया। तो मैं हार गया।' तो अहंकार टूटेगा।
और सूखे पत्ते इतने चालाक भी नहीं हैं कि अपने अहंकार को बचाने के लिए नई-नई तरकीबें खोजते रहें। आदमी तो बड़ा चालाक है। ___ मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन एक राह से गुजर रहा था और एक बड़े पहलवान जैसे दिखाई पड़नेवाले आदमी ने जोर से उसकी पीठ पर धक्का मारा, धौल जमा दी। वह चारों खाने चित्त जमीन पर गिर पड़ा। उठकर खड़ा हुआ। बड़ा नाराज था। लेकिन नाराजगी एक क्षण में हवा हो गई–देखा कि पहलवान खडा है. एक झंझट की बात है। फिर भी लेकिन आदमी तो कशल है. चालाक है। उसने कहा : 'महानुभाव! यह आपने मजाक में किया है या गंभीरता से?' उस पहलवान ने कहाः मजाक में
एकाकी रमता जोगी
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