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________________ समझना कि झूठ है। जैसे अभी मैं बोल रहा हूं यहां। अब तुम यह सोच सकते हो कि कोई नहीं बोल रहा। यह सब अपना सपना है। कठिन होगा। सच भी नहीं है, मगर यह तीन महीने का अभ्यास। वृक्ष दिखाई पड़ रहे हैं, तुम खयाल रखना कि सपना है, झूठ है। जो भी दिखाई पड़ रहा है, झूठ है। तीन महीने तक अगर तुम जो भी दिन में देखो, उसे झूठ मानते रहो तो तीन महीने के बाद एक दिन अचानक रात में तुम देखोगे कि सपना दिखाई पड़ रहा है और तुम जान रहे हो कि झूठ है। अभ्यास हो गया। नई बात का अभ्यास हो गया। यही तो हिंदुओं के माया के सिद्धांत का सारा अर्थ है। गुरजिएफ का जो प्रयोग है वह माया का प्रयोग है। हिंदुओं का यह कहना कि संसार माया है, सिर्फ इतना ही अर्थ रखता है कि तुम अगर जागते में याद कर लो. अभ्यास कर लो तो एक दिन नींद में भी पक्का हो जायेगा कि सपना झठ है। और रात सपने खो जायें, दिन में विचार खो जायें, तो धीरे-धीरे तुम्हें उसकी याद आने लगेगी, जो देख रहा है। अभी तो हम इतने ग्रसित हैं दृश्य के साथ कि द्रष्टा की स्मृति नहीं आती। और वही मूल सत्य है; स्रोत सत्य है। वही हमारी वास्तविक संपदा है। वहीं छिपा है महाशय। वहीं हमारा आकाश छिपा है। 'आशारहित, संदेहरहित चित्त ही शोभायमान है।' तुम्हारी आशाएं तुम्हारे अतीत का ही प्रक्षेपण है। तुमने जो अतीत में जाना है उसी को छांट-छांट कर, बुरे को काटकर, भले को बचाकर, कतरन जोड़-जोड़कर तुम भविष्य की आकांक्षायें बनाते हो। जो-जो दुखद था वह छोड़ देना चाहते हो, जो-जो सुखद था उसको बढ़ा-बढ़ाकर भविष्य में पाना चाहते हो। भविष्य तुम्हारे अतीत की प्रतिध्वनि है। अंजुरी के फूल झर गये, गंध है अंगुलियों में शेष अतीत तो गया, जा चुका, लेकिन उसकी यादें रह गई हैं बसी। अंजुरी के फूल झर गये, गंध है अंगुलियों में शेष गुजर रहे लोग भीड़ से अपने में खोये-खोये सहमे-से सोच रहे हम कहां तलक खुद को ढोयें एक उम्र काटी हमने स्मृति के चुनते अवशेष रिश्तों के बीच ही कहीं कुचल नहीं जायें इसलिए पूछ थके हर अपने से इतने संबंध किसलिए? क्यों यह असुरक्षा का भय? क्यों यह संबंधों के क्लेश? कुछ अपने साथ है बची भोगें अनुभव की पूंजी जिस पर प्रतिध्वनित हो रही कोई अनगूंजन गूंजी और हम भविष्य की तरफ टकटकी लगाये अनिमेष अनुभव की पूंजी में से ही हम छांट रहे हैं। फूल तो गये, अंगुलियों में थोड़ी गंध रह गई, स्मृति अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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