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न तो मुमुक्षा है, न न-मुमुक्षा है। न समाधि है, न विक्षेप। "ऐसा जो महाशय है वह संसार को कल्पित देखकर ब्रह्मवत रहता है।'
इसे भी खयाल रखना। अष्टावक्र कहते हैं, एक ही बात घटती है उस व्यक्ति को, इस महाशय की अवस्था में संसार स्वप्नवत हो जाता है। नहीं कि मिट जाता है; खयाल रखना, मिट नहीं जाता। अनेकों को भ्रांति है कि ज्ञानी के लिए संसार मिट जाता है। मिट नहीं जाता, स्वप्नवत हो जाता है। होता है, लेकिन एक बात निश्चित हो जाती है ज्ञानी के भीतर कि आभास मात्र है। .. तुमने देखा? एक सीधी लकड़ी को पानी में डाल दो, तिरछी दिखाई पड़ने लगती है। तुम जानते हो सीधी है। खींचकर निकालो, सीधी है। फिर पानी में डालो, अब तुम भलीभांति जानते हो कि पानी में जाकर तिरछी होती नहीं, सिर्फ दिखाई पड़ती है। फिर भी तिरछी ही दिखाई पड़ती है। पानी में हाथ डालकर लकड़ी को छूकर देख लो, सीधी की सीधी है; मगर दिखाई तिरछी पड़ती है। अब तुम जानते हो कि लकड़ी सीधी है, तिरछी नहीं, सिर्फ आभास होता है। किरण के नियमों के कारण, प्रकाश के नियमों के कारण तिरछी दिखाई पड़ती है। हवा के माध्यम और पानी के माध्यम में फर्क है, इसलिए तिरछी दिखाई पड़ती है।
ज्ञानी को संसार मिट नहीं जाता, स्वप्नवत हो जाता है। निश्चित्य कल्पितं...।
एक ही बात निश्चित हो जाती है कि कल्पना मात्र है। • पश्यन् ब्रह्मैवास्ते महाशयः।
और ऐसा देखकर...। पश्यन् ब्रह्मैव आस्ते।
और ऐसा देखकर महाशय, ज्ञानी ब्रह्म में ठहर जाता। अपने ब्रह्मस्वरूप में लीन हो जाता। पश्यन् ब्रह्मैवास्ते।
डुबकी लगा लेता है। ठहर जाता। केंद्र पर आ जाता। कल्पना है संसार, ऐसा जानकर अब कल्पना के पीछे दौड़ता नहीं।।
राम की कथा में तुमने देखा? स्वर्णमृग के पीछे दौड़ गये। कथा मधुर है। कोई भी जानता है कि मृग सोने के होते नहीं। कल्पना ही होगी। धोखा ही होगा। सपना ही होगा। भ्रांति ही होगी। फिर भी
वर्णमग को खोजने चले गये। ऐसे गये स्वर्णमग को खोजने. जो नहीं था उसे खोजने गये. सीता को गंवा बैठे।
यह कथा मधर है, अर्थपूर्ण है। ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति के भीतर का राम स्वर्णमगों को खोजने चला गया है। और ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति के भीतर के राम ने अपनी सीता को गंवा दिया, अपने स्वभाव को गंवा दिया। जो अपना था वह गंवा दिया। उसके पीछे चले गये हैं, जो नहीं है; जो सिर्फ दिखाई पड़ता है। जिस दिन तुम्हें दिखाई पड़ जायेगा कि स्वर्णमृग वास्तविक नहीं है, धोखा है, भ्रमजाल है, उसी क्षण तुम लौट आओगे। उसी क्षण अपने में ठहर जाओगे।
पश्यन् ब्रह्मैव आस्ते। उसी क्षण तुम अपने में खड़े हो जाओगे। थिर! स्वस्थ! अब तुम कहीं नहीं जाते। अब तुम जानते
राम
महाशय को केसा मोक्ष!
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