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वह जो फकीर था गुफा में रहनेवाला, उसने अपने पैरों में जंजीरें डाल रखी थीं और गुफा के साथ जोड़ रखी थीं जंजीरें; और हाथ में जंजीरें थीं। मैं इसलिए हंस रहा हूं कि तुमने ये जंजीरें क्यों डाल रखी हैं? उस फकीर ने कहा, इसलिए कि कभी-कभी मन में कमजोरी के क्षण आते हैं और भाग जाने का मन होता है। संसार में लौट जाने की इच्छा प्रबल हो जाती है। तब ये जंजीरें रोक लेती हैं। थोड़ी देर ही रुकती है वह कमजोरी; फिर अपने को सम्हाल लेता हूं। उतनी देर के लिए जंजीरें काम दे जाती हैं क्योंकि जंजीरें खोलना आसान नहीं। ये मैंने सदा के लिए बंद करवा दी हैं। तो कमजोरी के क्षण में सहारा मिल जाता है।
लेकिन यह भी कोई बात हुई ? जंजीरों के सहारे अगर रुके रहे गुफा में...। और ऐसा नहीं है कि सभी संन्यासी इस तरह की स्थूल जंजीरें बांधते हैं, सूक्ष्म जंजीरें हैं। कोई जैन मुनि हो गया; अब बीस साल प्रतिष्ठा, तीस साल प्रतिष्ठा, सम्मान, चरणस्पर्श, लोगों का मान, पूजा, आदर...। अब आज अचानक अगर लौटना चाहे तो यह सारा पूजा-आदर जो तीस साल मिला है, यह जंजीर बन जाता है। आज हिम्मत नहीं होती कि लौटकर जाऊं संसार में, लोग क्या कहेंगे? अहंकार बाधा बन जाता है। यह बड़ी सूक्ष्म जंजीर है। ___ इसलिए तो त्यागी को आदर दिया जाता है। यह संसारी की तरकीब है उसको गुफा में रखने की। भाग न सको। बच्चू, एक दफा आ गये गुफा में, निकलने न देंगे। ऐसी सूक्ष्म जंजीरें हैं। इतना शोरगुल मचायेंगे, इतना बैंडबाजा बजायेंगे, शोभा यात्रा निकालेंगे, लाखों खर्च करेंगे। लगा दी उन्होंने मुहर। अब तुम्हें भागने न देंगे। क्योंकि ध्यान रखना, जितना सम्मान दिया इतना ही अपमान होगा।
सम्मान की तुलना में ही अपमान होता है। इसलिए जैन मुनि भागना बहुत मुश्किल पाता है। हिंदू संन्यासी इतना मुश्किल नहीं पाता, क्योंकि इतना सम्मान कभी किसी ने दिया भी नहीं। तो उसी मात्रा में अपमान है। मेरे संन्यासी को तो कोई दिक्कत नहीं। वह किसी भी दिन संन्यास छोड़ दे। क्योंकि किसी ने कोई सम्मान दिया नहीं था; अपमान कोई देगा नहीं। अपमान का कोई कारण नहीं है। अपमान उसी मात्रा में मिलता है जिस मात्रा में सम्मान ले लिया। सम्मान जंजीर बन जाता है।
अगर तुम सच में समझदार हो तो कभी अपने ध्यान, अपने संन्यास के लिए किसी तरह का सम्मान मत लेना। क्योंकि जो सम्मान दे रहा है वह तुम्हारा जेलर बन जायेगा। उससे कह देना, सम्मान नहीं। क्षमा करो। धन्यवाद। क्योंकि कल अगर मैं लौटना चाहूं तो मैं कोई जंजीरें नहीं रखना चाहता अपने ऊपर। मैं जैसा मुक्त संन्यास में आया था उतना ही मुक्त रहना चाहता हूं अगर संन्यास के बाहर मुझे जाना हो। ___ तो कुछ तो गुफाओं में स्थूल जंजीरें बांध लेते हैं, कुछ सूक्ष्म जंजीरें; मगर जंजीरें हैं। और ये जंजीरें रोके रखती हैं। यह कोई रुकना हुआ? जंजीरों से रुके, यह कोई रुकना हुआ? ___ आनंद से रुको, जंजीरों से नहीं। अहोभाव से रुको, अपमान के भय से नहीं। सम्मान की आकांक्षा से नहीं, समाधि के रस से। __लेकिन यह तभी संभव होगा जब संसार का रस चुक गया हो। इसलिए मेरा जोर है कि कच्चे मत भागना। अधूरे-अधूरे मत भागना। बीच से मत उठ आना महफिल से। महफिल पूरी हो जाने दो। यह गीत पूरा सुन ही लो। इसमें कुछ सार नहीं है। घबड़ाना कुछ है भी नहीं। यह नाच पूरा हो ही जाने
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5