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तीसरा प्रश्नः एक ओर आप कहते हैं कि वासना स्वभाव से दुष्यूर है। वह सदा अतृप्त की अतृप्त बनी रहती है। और दूसरी ओर आप यह भी कहते हैं कि यदि संसार में रस बाकी रह गया हो तो उसे पूरा भोग लेना भी अपेक्षित रोधाभास दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि है। इस विरोधाभास को दूर करने की अनुकंपा तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। विरोधाभास करें।
__ मालूम पड़ते हैं, क्योंकि तुम्हारी आंख खुली हुई
नहीं है। अंधेरे में टटोलते हो, इसलिए विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं। अन्यथा कोई विरोधाभास नहीं है। समझो।
निश्चित ही वासना दुष्पूर है; ऐसा बुद्ध का वचन है। ऐसा समस्त बुद्धों का वचन है। वासना दुष्पूर है, इसका अर्थ होता, वासना को भरा नहीं जा सकता। तुम लाख उपाय करो। ___ दस रुपये हैं तो बीस रुपये चाहिए। दस हजार हैं तो बीस हज़ार चाहिए। और दस लाख हैं तो बीस लाख चाहिए। जो अंतर है दस और बीस का; कायम रहता है। वासना दुष्पूर है, इसका अर्थ हुआ कि तुम्हारी अतृप्ति का जो अनुपात है, सदा कायम रहता है। उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम कितना कमा लोगे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारी वासना उतनी ही आगे बढ़ जायेगी। वासना क्षितिज की भांति है। दिखाई पड़ता है यह दस मील, बारह मील दूर मिलता हुआ पृथ्वी से। भागो, लगता है घड़ी में, दो घड़ी में पहंच जायेंगे। भागते रहो जन्मों-जन्मों तक, कभी न पहुंचोगे। तुम जितने भागे उतना ही क्षितिज आगे हट गया। तुम्हारे और क्षितिज के बीच का फासला सदा वही का वही।
वासना दुष्पूर है इसका अर्थ, कि वासना को भरने का कोई उपाय नहीं।
यह सत्य है। अब तुम्हें विरोधाभास लगता है क्योंकि दूसरी बात मैं कहता हूं, कि जब तक रस बाकी रह गया हो तब तक कठिनाई है। रस को पूरा ही कर लेना। मैं तुमसे कहता हूं वासना दुष्पूर है; मैंने तुमसे यह नहीं कहा कि रस समाप्त नहीं होगा। रस विरस हो जायेगा। वासना तो दुष्पूर है। तुम्हारा रस सूख जायेगा।
सच तो यह है, वासना दुष्पूर है ऐसा जान कर ही रस विरस हो जायेगा। विरोधाभास नहीं है। जिस दिन तुम जानोगे कि वासना भर ही नहीं सकती। दौड़-दौड़ थकोगे, दौड़-दौड़ गिरोगे। सब उपाय कर लोगे, वासना भरती नहीं। कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता। असंभव है। हो ही नहीं सकता। तो धीरे-धीरे तुम पाओगे कि जो हो ही नहीं सकता, जो कभी हुआ ही नहीं है, उसमें रस विक्षिप्तता है।
जैसे कोई आदमी दो और दो को तीन करना चाहता हो और कहता हो. मझे बडा रस है. मैं दो और दो को तीन करना चाहता हूं। तो हम कहेंगे, करो। दो और दो तीन होंगे नहीं। तुम करो। दो और दो तीन होंगे नहीं तुम्हारे करने से, एक दिन तुम ही जागोगे और तुम्हारा रस ही मूढ़तापूर्ण सिद्ध हो जायेगा। और तुम ही कहोगे कि यह होनेवाला नहीं, क्योंकि यह हो ही नहीं सकता। मेरे रस में ही मूढ़ता है। तुम्हारा रस ही खंडित हो जायेगा।
जब तुम्हारा रस खंडित होगा, तब भी तुम यह मत सोचना कि दो और दो तीन हो जायेंगे। तब भी दो और दो तीन नहीं होते लेकिन अब तुम्हारा रस न रहा। रस का अर्थ ही है कि तुम्हें आशा है कि
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5 |