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________________ दूसरा प्रश्नः आपको पाने के बाद मुझमें बहुत कुछ रूपांतरण हुआ; और ऐसा भी लगता है कि कुछ भी नहीं हुआ है। इस विरोधाभास को स्पष्ट करने की कृपा करें। या भाविक है। ऐसा ही होगा। ऐसा ही प्रत्येक को लगेगा। क्योंकि जिस रूपांतरण की हम चेष्टा कर रहे हैं, इस रूपांतरण में कुछ अनूठी बात है, जो समझ लेना। यहां तुम्हें वही बनाने का उपाय किया जा रहा है जो तुम हो। यहां तुम्हें अन्यथा बनाने की चेष्टा नहीं चल रही है। तुम्हें तुम्हारे स्वाभाविक रूप में ले जाने का उपाय हो रहा है। तुम्हें वही देना है जो तुम्हारे पास है। तो जब मिलेगा तो एक तरफ से तो लगेगा कि अपूर्व मिलन हो गया, क्रांति घटी। अहोभाव! और दूसरी तरफ यह भी लगेगा कि जो मिला वह कुछ नया तो नहीं है। वह तो कुछ पहचाना लगता है। वह तो कुछ अपना ही लगता है। वह तो जैसे था ही अपने भीतर, और याद न रही थी। - बुद्ध को जब ज्ञान हुआ और देवताओं ने उनसे पूछा कि क्या मिला? तो कथा कहती है, बुद्ध हंसे और उन्होंने कहा, मिला कुछ भी नहीं। जो मिला ही हुआ था उसका पता चला। जो प्राप्त ही था लेकिन भूल बैठे थे। जैसे कभी आदमी चश्मा लगाये और अपने चश्मे को खोजने लगता है। और चश्मे से ही खोज . रहा है। आंख पर चश्मा लगाये है और खोज रहा कि चश्मा कहां गया है। विस्मरण! याददाश्त खो गई है। सत्य नहीं खोया है सिर्फ याद खो गई है। ____ तो जब याद जागेगी तो ऐसा भी लगेगा कि कुछ मिला, अपूर्व मिला; क्योंकि इसके पहले याद तो नहीं थी। तो भिखारी बने फिर रहे थे। सम्राट थे और अपने को भिखारी समझा था। और ऐसा भी लगेगा कि कुछ भी तो नहीं मिला। सम्राट तो थे ही। इसी की याद आ गई। विरोधाभास नहीं है। अगर तुम्हें ऐसा लगे कि कुछ एकदम नवीन मिला है तो समझना कि कुछ झूठ मिल गया। ऐसा लगे कि कुछ नवीन मिला है जो अति प्राचीन भी है, तो ही समझना कि सच मिला। अगर ऐसा लगे कि सनातन और चिर नूतन; सदा से है और अभी-अभी ताजा घटा है, ऐसी दोनों बातें एक साथ जब लगें तभी समझना कि सत्य के पास आये। सत्य के द्वार में प्रवेश मिला है। तुम्हें अन्यथा बनाने की चेष्टा बहुत की गई है। कोई नहीं चाहता कि तुम वही हो जाओ, जो तुम हो। कोई चाहता है तुम कृष्ण बन जाओ, कोई चाहता है तुम क्राइस्ट बन जाओ, कोई चाहता है महावीर बनो, कोई चाहता है बुद्ध बनो। लेकिन तुमने खयाल किया? कभी दुबारा कोई आदमी बुद्ध बन सका? एक बार एक आदमी बुद्ध बना, बस। एक बार एक आदमी कृष्ण बना, बस। अनंत काल बीत गया, दुबारा कोई कृष्ण नहीं बना। __ इससे तुम्हें कुछ समझ नहीं आती? इससे कुछ बोध नहीं होता? कि तुम लाख उपाय करो कृष्ण बनने के-रासलीला में बनना हो, बात अलग; असली कृष्ण न बन सकोगे। लाख उपाय करो राम बनने के, रखो धनुषबाण, चले जंगल की तरफ, ले लो सीता को भी साथ और लक्ष्मण को भी; रामलीला होगी, असली राम न बन सकोगे। घन बरसे 31
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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