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________________ बोले, हे मां! सुनकर कविपत्नी भभकी बोली, होकर तीन बच्चों के बाप नाम रट रहे हेमा का? सत्यानाश हो सिनेमा का हम जो सुनना चाहते हैं, सुन लेते हैं। वही थोड़े ही सुनते हैं जो कहा जाता है। हमारा सुनना शुद्ध नहीं है, विकृत है। __ बुद्धि से सुना गया, सुना ही नहीं गया। सुनने का धोखा हुआ, आभास हुआ। लगता था, सुना। तुम्हारे विचार बीच में आ गये। तुम्हारी बुद्धि ने आकर सब रूपांतरित कर दिया; अपना रंग उंडेल दिया। काले को पीला कर दिया, पीले को काला कर दिया। फिर तुम तक जो पहुंचा, वह वही नहीं था जो दिया गया था। वह बिलकुल ही विनष्ट होकर पहुंचा, विकृत होकर पहुंचा। इसलिए पहली बात : बुद्धि की समझ कोई समझ नहीं है। एक और समझ है, वही समझ रूपांतरण लाती है। उसको कहो ध्यान की समझ। बुद्धि की नहीं, विचार की नहीं, निर्विचार की समझ। तर्क की नहीं, शांत भाव की; विवाद की नहीं, संवाद की। __ तुम मुझे सुनो बुद्धि से तो सतत विवाद चलता है। ठीक कह रहे, गलत कह रहे, अपने शास्त्र के अनुसार कह रहे कि विपरीत कह रहे, मैं राजी होऊं कि न राजी होऊं, अब तक मेरी मान्यताओं के तराजू पर बात तुलती है या नहीं तुलती है, ऐसी सतत भीतर तौल चल रही है। यह विवाद है। तुम राजी भी हो जाओ तो भी दो कौड़ी का है तुम्हारा राजी होना। क्योंकि विवाद से कहीं कोई सहमति आयी? विवाद की सहमति दो कौड़ी की है। उसका कोई मूल्य नहीं।-संवाद! संवाद का अर्थ है, जब मैं कह रहा हं तब तम मेरे साथ लीन हो गये। तमने दर खडे रहकर न सना. तुम मेरे पास आ गये। तुम मेरे हृदय के पास धड़के। तुम मेरे हृदय की तरह धड़के। तुमने अपने हिसाब-किताब को एक तरफ हटा दिया और तुमने कहा, थोड़ी देर झरोखे को खाली रखेंगे। थोड़ी देर दर्पण बनेंगे। ____ दर्पण बनकर जो सुनता है वही सुनता है। और दर्पण बनकर जो सुनता है उसमें समझ अनायास पैदा होती है। दर्पण बनकर जो सुनता है वही शिष्य है; वही सीखने में समर्थ है। जो दर्पण बनकर सुनता है वह ज्ञान के आधार से नहीं सुनता। वह तो इस परम भाव से सुनता है कि मुझे कुछ भी पता नहीं। मैं अज्ञानी हूं। मुझे क, ख, ग भी पता नहीं है। इसलिए क्या विवाद? पंडित तो कभी सुनता ही नहीं। पंडित का तो अपना ही शोरगुल इतना है कि सुनेगा कैसे? मीन-मेख निकालता, आलोचना में लीन रहता भीतर। अगर राजी भी होता है तो मजबूरी में राजी होता है। और जब राजी भी होता है तो वह अपने से ही राजी होता है। जो सुना गया उससे राजी नहीं होता। अगर मैंने कुछ बात कही, जो कुरान से मेल खाती थी, मुसलमान राजी हो गया। वह मुझसे थोड़े ही राजी हुआ! वह कुरान से राजी था, कुरान से राजी रहा। वह मुसलमान था, मुसलमान रहा। इतना ही उसने मान लिया कि यह आदमी भी कुरान की ही बात कहता है। तो ठीक है, कुरान ठीक है, यह इसलिए आदमी भी ठीक है। धन बरसे 29
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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