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बंदरिया सुंदर, सुंदरतम नारी हो गई थी। __बंदर ने कहा, अब हम एक बार और कूदें। बंदर तो बंदर! उसने कहा, अब अगर हम कूदे तो देवता होकर निकलेंगे। बंदरिया ने कहा कि देखो, दुबारा कूदना या नहीं कूदना, हमें कुछ पता नहीं। स्त्रियां साधारणतः ज्यादा व्यावहारिक होती हैं। सोच-समझकर चलती हैं ज्यादा। देख लेती हैं, हिसाब-किताब बांध लेती हैं, करने योग्य कि नहीं। आदमी तो दुस्साहसी होते हैं।
बंदर ने कहा, तू फिक्र छोड़। तू बैठ, हिसाब कर। अब मैं चूक नहीं सकता। बंदरिया ने फिर कहा, सुना है पुरखे हमारे सदा कहते रहे : 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'। अति नहीं करनी चाहिए। अति का वर्जन है। अब जितना हो गया इतना क्या कम है? मगर बंदर न माना। मान जाता तो बंदर नहीं था। कूद गया। कूदा तो फिर बंदर हो गया। उस सरोवर का यह गुण था-एक बार कूदो तो रूपांतरण। दुबारा कूदे तो वही के वही।
बंदरिया तो रानी हो गई। एक राजा के मन भा गई। बंदर पकड़ा गया एक मदारी के हाथों में। फिर एक दिन मदारी लेकर राजमहल आया तो बंदर अपनी बंदरिया को सिंहासन पर बैठा देखकर रोने लगा। याद आने लगी। और सोचने लगा, अगर मान ली होती बात दुबारा न कूदा होता! तो बंदरिया ने उससे कहा, अब रोओ मत। आगे के लिए इतना ही स्मरण रखोः अति सर्वत्र वर्जयेत्। अति वर्जित है। ____ ध्यान ऐसा ही सरोवर है। समाधि ऐसा ही सरोवर है जहां तुम्हारा दिव्य ज्योतिर्धर रूप प्रगट होगा।
लेकिन लोभ में मत पड़ना। अति सर्वत्र वर्जयेत्। . यह जो तुम्हारा प्रश्न है, अत्यंत लोभ का है। प्रश्न को जरा गौर से देखो तो तुम्हें खयाल आ जायेगा। ‘मरना चाहता हूं, भरना चाहता हूं, करना चाहता हूं, शून्य होना चाहता हूं।' चाहता हूं... चाहता हूं...चाहता हूं। चाह ही चाह। प्रत्येक पंक्ति में चाह ही चाह भरी है। ___ और यही मैं तुम्हें समझा रहा हूं कि चाहे कि संसार पैदा हुआ। चाहत का नाम संसार है। अब तुम एक नया संसार पैदा कर रहे हो। अब यह मरना, निर्वाण, शून्य, समाधि-अब तुम्हें ये पकड़े ले रहे हैं। तुम जाल से कभी छूटोगे, न छूटोगे? . एक और कहानी तुमसे कहता।
कहते हैं कि एक बार शैतान का मन ऊब गया। सभी का ऊब जाता है। शैतान का भी ऊब गया हो तो आश्चर्य नहीं। शैतान का तो ऊब ही जाना चाहिए। कब से शैतानी कर रहा है! तो उसने संन्यास लेने का निश्चय कर लिया। तब उसने अपने गुलामों को बेचना शुरू कर दिया ः बुराई, झूठ, ईर्ष्या, निरुत्साह, दर्प, हिंसा, परिग्रह आदि-आदि। सब पर तख्तियां लगा दीं। खरीददार तो सदा से मौजूद हैं। शैतान की दूकान पर कब ऐसा हुआ कि भीड़ न रही हो। परमात्मा के मंदिर खाली पड़े रहते हैं। शैतान की दूकान पर तो सदा भीड़ होती है, भारी भीड़ होती। जमघट होता है। क्यू लगे रहते हैं।
और जब यह लोगों को पता चला कि शैतान अपने विश्वस्त गुलामों को भी बेच रहा है तो सभी व गये। राजनेता पहंचे. धनपति पहंचे। सभी तरह के उपद्रवी पहंच गये। क्योंकि शैतान के सशिक्षित सेवक मिल जायें तो फिर क्या? फिर तो दनिया फतह। एक के बाद एक गलाम बिकने लगे। शैतान के भक्त आते गये और अपनी-अपनी पहचान, अपनी-अपनी पसंद का गुलाम खरीदते गये। पर एक बहुत ही भोंडी और कुरूप औरत खड़ी थी जिसे कोई पहचान ही नहीं पा रहा था कि यह कौन
अवनी पर आकाश गा रहा ।
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