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संसार में सुख और दुख मिश्रित हैं। वहां चांद भी है और सूरज भी। और मोर भी नाचते हैं और सिंह भी दहाड़ते हैं। तो जब तुम मौजूद होते हो संसार में तो सब उसका दुख दिखाई पड़ता है; वह उभरकर आ जाता है। जब तुम दूर हट जाते हो तो सब याद आती हैं सुख की बातें ।
इसलिए मैं कहता हूं मेरे संन्यासी को, भागना मत। वहीं रहना । पकना । भागना मत, पकना । पककर गिरना। थक जाने देना । अपने से होने देना। तुम जल्दी मत करना।
जो सहज हो जाये वही सुंदर है। साधो सहज समाधि भली ।
शुष्कपर्णवत जीयो
आज इतना ही ।
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