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________________ पागल हो, जिसको तुम पागल कहते हो वह सौ डिग्री के पार चला गया। यह डिग्री की ही बात है। तुम जरा उबल गये। दिवाला निकल गया, पत्नी मर गई, तुम भी एक सौ एक डिग्री पर पहुंच जाओगे। जिनको तुम कहते हो पागल नहीं हैं, वे कभी भी पागल हो सकते हैं। जिनको तुम कहते हो पागल हैं, वे कभी भी फिर सामान्य हो सकते हैं। अंतर गुण का नहीं है, मात्रा का है। . समाज तो खुद ही पागल है। तीन हजार सालों में पांच हजार युद्ध लड़े गये हैं। और पागलपन क्या होगा? सच तो यह है, व्यक्ति इतने पागल कभी होते ही नहीं जितना समाज पागल है। व्यक्तियों ने इतने अपराध कभी किये ही नहीं जितने समाज ने अपराध किये हैं। ___ इस समाज के साथ व्यक्ति को समायोजित कर देना कोई स्वस्थ होने की बात नहीं है, कोई स्वस्थ होने का मापदंड नहीं है। यह समाज रुग्ण है। इस रुग्ण समाज के साथ किसी को समायोजित करने का अर्थ इतना ही हुआ कि भीड़ के रोग के साथ तुमने तालमेल बिठा दिया। खलील जिब्रान की प्रसिद्ध कथा है। एक गांव में एक जादूगर आया और उसने गांव के कुएं में मंत्र पढ़कर कुछ दवा फेंक दी और कहा, जो भी इसका पानी पीयेगा, पागल हो जायेगा। अब गांव में दो ही कुएं थे, एक गांव का और एक राजा का। सारा गांव पागल हो गया सिर्फ राजा, उसका वजीर, उसकी रानी, इनको छोड़कर। राजा बड़ा खुश हुआ। उसने कहा, हम बचे। आज अलग कुआं था तो बच गये। अब लोग प्यासे थे तो पानी तो पीना ही पड़ा। और एक ही कुआं था, तो कोई उपाय भी न था। सारा गांव पागल हो गया। राजा खुश है, परमात्मा को धन्यवाद देता है कि खूब बचाया। लेकिन सांझ होते-होते राजा को पता चला, यह बचना बचना न हुआ। क्योंकि सारे गांव में एक अफवाह जोर पकड़ने लगी कि मालूम होता है, राजा का दिमाग खराब हो गया है। ' जब सारा गांव पागल हो जाये और एक आदमी स्वस्थ बचा हो तो सारा गांव सोचेगा ही कि पागल हो गया यह आदमी। भीड़ एक तरफ हो गई, राजा एक तरफ पड़ गया। इस भीड़ में राजा के सिपाही भी थे, सेनापति भी थे। इस भीड़ में राजा के पहरेदार भी थे, अंगरक्षक भी थे। राजा तो घबड़ा गया। सांझ होते-होते तो सारा गांव महल के चारों तरफ इकट्ठा हो गया। और लोगों ने नारे लगाये कि उतरो सिंहासन से। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। हम किसी स्वस्थ-मन व्यक्ति को राजा बनायेंगे। . राजा ने अपने वजीर से कहा, अब बोलो, क्या करें? यह तो महंगा पड़ गया। यह कुआं आज न होता तो अच्छा था। वजीर ने कहा, कुछ घबड़ाने की बात नहीं। मैं इन्हें रोकता हूं, समझाता हूं, आप भागे जायें, उस कुएं का पानी पी लें। गांव के कुएं का पानी पी लें। आप जल्दी पानी पीयें, अब देर करने की नहीं है। वह भागा राजा। वजीर तो लोगों को बातों में उलझाये रहा। राजा वहां से पानी पीकर आया तो नंगधडंग, नाचता। गांव बड़ा खुश हुआ। उस रात बड़ा उत्सव मनाया गया। लोगों ने ढोल पीटे, बांसुरी बजाई। लोग खूब नाचे। लोगों ने कहा, हमारे राजा का मन स्वस्थ हो गया। भीड़ पागल हो, समाज पागल हो, इस समाज के साथ किसी को समायोजित कर देने का कोई बड़ा मूल्य थोड़े ही है! अवनी पर आकाश गा रहा 355
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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