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सज्जन। संतत्व तो कृष्ण में प्रगट हुआ है। राम ज्यादा से ज्यादा लोकमान्य, क्योंकि लोकवत। कृष्ण लोकमान्य कभी नहीं हो सकते। ___ जो लोग उन्हें लोकमान्य बनाने की कोशिश करते हैं वे भी उनमें कांट-छांट कर लेते हैं। उतना ही बचा लेते हैं जितना ठीक। जैसे सूरदास हमेशा उनके बचपन के गीत गाते हैं, उनकी जवानी के नहीं। क्योंकि बचपन में ठीक है कि तुमने मटकी फोड़ दी, बचपन में ठीक है कि तुमने शैतानी की। लेकिन सूरदास को भी अड़चन मालूम होती है, जवान कृष्ण ने जो मटकियां फोड़ी उन पर जरा अड़चन मालूम होती है। कि स्त्रियों के वस्त्र लेकर झाड़ पर बैठ गये, इसमें जरा अड़चन मालूम होती है।
महात्मा गांधी गीता के कृष्ण की बात करते हैं लेकिन भागवत के कृष्ण की बात नहीं करते। क्योंकि भागवत का कृष्ण तो खतरनाक है। गीता के कृष्ण में तो कृष्ण कुछ है ही नहीं, सिर्फ बातचीत है। कष्ण के आचरण के संबंध में तो कछ भी नहीं है। कष्ण का वक्तव्य है गीता. कष्ण का जीवन नहीं है। कृष्ण का जीवन तो भागवत है। गीता में तो बड़ी आसानी है। लेकिन वहां भी लीपा-पोती करनी पड़ती है। वहां भी गांधी को कहना पड़ता है, युद्ध सच्चा नहीं है, काल्पनिक है। यह जो युद्ध हो रहा है, कौरव-पांडव के बीच नहीं है, बुराई और भलाई के बीच हो रहा है। इतनी उनको कहनी ही पड़ती बात, क्योंकि वे अहिंसक। युद्ध हो रहा है और अगर युद्ध असली है, और कृष्ण अगर असली युद्ध करवा रहे हैं तो पाप हो रहा है।
कृष्ण कोई मर्यादा नहीं मानते। अहिंसा की मर्यादा नहीं, समाज की मर्यादा नहीं, कोई मर्यादा नहीं मानते। जीवन की परम स्वतंत्रता और जीवन जैसा हो वैसा ही होने देने का अपूर्व साहस...।
नहीं, कृष्ण छोटे-मोटे ढांचे में नहीं ढाले जा सकते। अड़चन है। इसलिए राम भाते हैं।
गांधी कहते थे कि गीता मेरी माता है, लेकिन मरते वक्त जो नाम निकला, मुंह से निकला, 'हे. राम!' कृष्ण कहीं गहरे गये नहीं। मरते वक्त वही निकला जो भीतर गहरे था। राम की याद आई। .
इसे खयाल रखना।
'जो ज्ञानी व्यवहार में भी स्वाभाविक है और लोकवत व्यवहार नहीं करता और महासरोवर की तरह क्लेशरहित है वही शोभता है।' ___अब यह महासरोवर की तरह क्लेशरहित, इसका मतलब समझो। महासरोवर को कभी तुमने लहरों से शांत देखा? महासरोवर का मतबल होता है सागर। सागर को तुमने कभी शांत देखा? वहां तो लहरें उठती हैं, उत्तुंग लहरें उठती हैं। लहरें ही लहरें उठती हैं। सागर कोई झील थोड़े ही है, कोई स्विमिंग पूल थोड़े ही है। सागर तो सागर है, महासागर है। जितना बड़ा सागर है उतनी बड़ी उत्तुंग लहरें हैं। आकाश छूनेवाली लहरें उठती हैं। अब यह वाक्य बड़ा अदभुत है :
महाहृद इवाक्षोभ्यः गतक्लेशः सुशोभते। और जैसा महासागर क्षोभरहित है ऐसा ही ज्ञानी है।
क्या मतलब हुआ इसका? महासागर तो सदा ही लहरों से भरा है। अष्टावक्र यह कह रहे हैं कि लहरों से खाली होकर जो क्षोभरहित हो जाना है वह भी कोई क्षोभरहितता है? लहरें उठ रही हैं और फिर भी शांति अखंडित है। संसार में खड़े हैं और संन्यास अखंडित है। जल में कमलवत। सागर लहरों से भरा है, लेकिन क्षुब्ध थोड़े ही है! जरा भी क्षुब्ध नहीं है, परम अपूर्व शांति में है। तुम्हें शायद
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5