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खीझ मत उस वक्त पर दे दोष मत उन बिजलियों को जो गिरीं तब-तब कि जब-जब तू चला करने बसेरा सृष्टि है शतरंज औ हैं हम सभी मोहरे यहां पर शाह हो पैदल कि शह पर वार सबका है बराबर फूल पर हंसकर अटक तो शूल को रोकर झटक मत ओ पथिक! तुझ पर यहां अधिकार सबका है बराबर
फूल का, शूल का दिन का, रात का ; ; जीवन का, मृत्यु का; सुख का, दुख का; सबका अधिकार बराबर है।
निमित्त का अर्थ है : दोनों स्वीकार। दोनों समभाव से स्वीकार । जो हो वही हो । जैसा हो रहा है वैसा ही हो। मेरी कोई अन्यथा की मर्जी नहीं है। ऐसा जिसको जंच जाये, फिर उसे स्वच्छंद की बात ही नहीं उठानी चाहिए।
मगर ऐसा न जंचे तो ऐसा नहीं है कि परमात्मा संकीर्ण है और एक ही मार्ग से कोई पहुंचता है। ऐसा नहीं है कि एक ही मार्ग है। तो तुम फिर पहुंच ही न पाओगे। ऐसा न जंचे तो ? तो परमात्मा की करुणा विराट है। वह कहता है, तो इससे विपरीत जंचता है ? यह नहीं जंचता तो इससे विपरीत जंचता है! स्वच्छंदता जंचती है ? विद्रोह जंचता है ? जंचता है यह घोषणा कर देना कि बस, मैं मेरे ही ढंग से जीयूंगा ? तो वैसे ही जीयो। उसी स्वयं के छंद में अपने को ढाल दो। परिपूर्ण स्वतंत्रता में जीयो। बिलकुल मत बनो निमित्त | मत करो समर्पण | स्वच्छंद जीयो ।
जिसको अष्टावक्र स्वच्छंद कहते हैं, उसी को महावीर ने अशरण कहा है। वे एक ही बातें हैं। जिसको कृष्ण ने निमित्तमात्र होना कहा है, उसी को चैतन्य ने, मीरा ने समर्पण कहा है। वे एक ही बातें हैं। अगर इन सारी बातों को ठीक-ठीक निचोड़कर संक्षिप्त में कहा जाये तो एक मार्ग ऐसा है स्त्री का है और एक मार्ग ऐसा है जो पुरुष का है। पुरुष के मार्ग का अर्थ होता है, वह समर्पण न कर पायेगा । वहं निमित्त न बन पायेगा । पुरुष के मार्ग का अर्थ होता है, वह अपनी उदघोषणा करेगा। स्वच्छंदता का, अशरण का मार्ग उसको जमेगा। स्त्री का अर्थ होता है, वह अपनी घोषणा न करेगी। वह उसके स्वभाव में नहीं है । वह विनम्र होगी। वह झुकेगी, वह समर्पण करेगी। वह निमित्तमात्र बनेगी।
खयाल रखना, जब मैं कहता हूं स्त्री-पुरुष का, तो मेरा मतलब ऐसा नहीं है कि सभी स्त्रियां इस मार्ग से जायेंगी और सभी पुरुष पुरुष के मार्ग से जायेंगे। नहीं, शरीर की बात नहीं है, मन की बात है । बहुत पुरुषों के पास स्त्रैण मन है । बहुत-सी स्त्रियों के पास पुरुष-मन है। इसलिए तुम शरीर पर ध्यान मत देना ।
कई बार कोई पुरुष मेरे पास आता है और इतना समर्पण भाववाला कि वैसी स्त्री खोजनी मुश्किल है। कभी कोई स्त्री आती है और ऐसी स्वच्छंद प्रकृति की कि वैसा पुरुष खोजना मुश्किल है। इसलिए यह जो मैं कह रहा हूं स्त्री-पुरुष, यह केवल प्रतीकात्मक शब्द हैं। लेकिन दो ही तरह के मार्ग हैं: स्वच्छंदता की घोषणा या निमित्त हो जाने का समर्पण ।
इतना ही खयाल रखना कि जो तुम्हें मौजूं पड़ जाये । थोपना मत । आग्रहपूर्वक, हठपूर्वक आरोपण
सदगुरुओं के अनूठे ढंग
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