SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब वह मरा–कई साल बाद मरा इस घटना के-जब वह मरा तो उसका एक बहुत प्रसिद्ध अनुयायी बेनेट पहुंच नहीं पाया समय पर। खबर कर दी गई थी, शिष्य आ जायें, क्योंकि उसे बोध था कि वह कब शरीर छोड़ देगा। लेकिन वह नहीं पहुंच पाया। पहुंचने की कोशिश की लेकिन प्लेन देर से आया। जब पहुंचा तो वह मरे कोई बारह घंटे हो चुके थे। रात, आधी रात बेनेट पहुंचा। जिस चर्च में उसकी लाश रखी थी, वह अंदर गया। वहां कोई भी न था रात में, सब शिष्य जा चुके थे। वह बड़ा हैरान हुआ। उसे ऐसा लगा कि वह जिंदा है। और बेनेट एक बड़ा विचारक है, गणितज्ञ है, वैज्ञानिक है। वह पास गया, उसने हृदय के पास कान रखकर सुनना चाहा। उसे ऐसा लगा कि वह सांस ले रहा है। वह बहुत घबड़ाया। मरे बारह घंटे हो गये और यह आदमी क्या अब भी कोई खेल कर रहा है, मरने के बाद भी? उसे इतना भय लगा कि वह बाहर आ गया निकलकर, लेकिन फिर भी उसकी आकांक्षा बनी रही कि एक दफा और जाकर देख लूं कि सच में यह बात है कि मैं किसी भ्रम में हूं? वह भीतर गया, उसने सब तरह से अपनी सांस रोककर बैठा। कहीं मेरी सांस की आवाज ही तो मुझे नहीं सुनाई पड़ रही है? लेकिन तब भी उसे सांस लेने की आवाज सुनाई पड़ती रही। . गुरजिएफ उस समय भी प्रयोग कर रहा था देह के बाहर खड़े होकर। देह के भीतर प्रयोग किए, देह के बाहर प्रयोग किए। गुरजिएफ अब भी, मर जाने के बाद भी उसके शिष्यों को उपलब्ध है-उतना ही जीवित, जितना तब था जब वह जीवित था। . मृत्यु में भी मरता नहीं ज्ञानी। दुख में दुखी नहीं होता—निरामयाः। ज्ञानी को पहचानने के लिए लेकिन तुम्हें ज्ञानी हो जाना पड़े। जैसे को जानना हो, वैसा होना ही उपाय है। आज इतना ही। निराकार, निरामय साक्षित्व 2931 -
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy