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__ और जिस दिन तुम सपने में जान लोगे कि यह झूठ है, सपना झूठ है, दृश्य झूठ है, द्रष्टा सच है; उस दिन तुम सुबह जागकर पाओगे, अब अभ्यास की जरूरत न रही। अब तो जो दिखाई पड़ता है वह झूठ है। झूठ का यह अर्थ नहीं है कि नहीं है, झूठ का इतना ही अर्थ है : आभास है। झूठ का इतना ही अर्थ है : शाश्वत नहीं है, क्षणभंगुर है। पानी का बबूला है। पानी पर बबूले उठते हैं, झूठ तो नहीं हैं, हैं तो। लेकिन झूठ इस अर्थ में हैं, टिकेंगे नहीं। अभी उठे, अभी गए। क्षणभंगुर हैं। आई लहर, गई लहर। टिकती नहीं, स्थिर नहीं है, थिरता नहीं है। कल नहीं थी, आज है, कल फिर नहीं हो जाएगी। ____ इस परिभाषा को याद रखना। पूरब की सत्य की यह परिभाषा है : जो सदा रहे वह सत्य। जो सतत रहे वही सत्य। सतत का निचोड़ ही सत्य। सत्य और सतत एक ही अर्थ रखते हैं। वह जो सातत्य है, वही सत। जो आज है कल नहीं हो जाए, वही असत। जिसका सातत्य न रहे, वही असत। ____असत को खयाल रखना। असत का यह मतलब नहीं होता कि नहीं है। पानी का बबूला भी है तो। रात का सपना भी है तो। सपना है, तो भी है तो। पानी पर उठी लहर है, मगर है तो। थोड़ी देर को है, बस इतना ही अर्थ है। और थोड़ी देर को जो है, उसमें जो उलझ गया वह दुख पायेगा। क्योंकि जो थोड़ी देर को है, थोड़ी देर बाद नहीं हो जाएगा।
तम एक प्रेम में पड़ गए। तमने एक स्त्री को चाहा. एक परुष को चाहा. खब चाहा। जब भी तम किसी को चाहते हो, तुम चाहते हो तुम्हारी चाह शाश्वत हो जाए। जिसे तुमने प्रेम किया वह प्रेम शाश्वत हो जाए। यह हो नहीं सकता। यह वस्तुओं का स्वभाव नहीं। तुम भटकोगे। तुम रोओगे। तुम तड़पोगे। तुमने अपने विषाद के बीज बो लिए। तुमने अपनी आकांक्षा में ही अपने जीवन में जहर डाल लिया। यह टिकनेवाला नहीं है। कुछ भी नहीं टिकता यहां। यहां सब बह जाता है। आया और गया। ___अब तुमने यह जो आकांक्षा की है कि शाश्वत हो जाए, सदा-सदा के लिए हो जाए; यह प्रेम जो हुआ, कभी न टूटे, अटूट हो; यह श्रृंखला बनी ही रहे, यह धार कभी क्षीण न हो, यह सरिता बहती ही रहे-बस, अब तुम अड़चन में पड़े। आकांक्षा शाश्वत की और प्रेम क्षणभंगुर का; अब बेचैनी होगी, अब संताप होगा। या तो प्रेम मर जाएगा या प्रेमी मरेगा। कुछ न कुछ होगा। कुछ न कुछ विघ्न पड़ेगा। कुछ न कुछ बाधा आएगी।
ऐसा ही समझो, हवा का एक झोंका आया और तुमने कहा, सदा आता रहे। तुम्हारी आकांक्षा से तो हवा के झोंके नहीं चलते। वसंत में फूल खिले तो तुमने कहा सदा खिलते रहें। तुम्हारी आकांक्षा से तो फूल नहीं खिलते। आकाश में तारे थे, तुमने कहा दिन में भी रहें। तुम्हारी आकांक्षा से तो तारे नहीं संचालित होते। जब दिन में तारे न पाओगे, दुखी हो जाओगे। जब पतझड़ में पत्ते गिरने लगेंगे,
और फूलों का कहीं पता न रहेगा, और वृक्ष नग्न खड़े होंगे दिगंबर, तब तुम रोओगे, तब तुम पछताओगे। तब तुम कहोगे, कुछ धोखा दिया, किसी ने धोखा दिया।
किसी ने धोखा नहीं दिया है। जिस दिन तुम्हारा और तुम्हारी प्रेयसी के बीच प्रेम चुक जाएगा, उस दिन तुम यह मत सोचना कि प्रेयसी ने धोखा दिया है; यह मत सोचना कि प्रेमी दगाबाज निकला। नहीं, प्रेम दगाबाज है। न तो प्रेयसी दगाबाज है, न प्रेमी दगाबाज है—प्रेम दगाबाज है। __ जिसे तुमने प्रेम जाना था वह क्षणभंगुर था, पानी का बबूला था। अभी-अभी बड़ा होता दिखता
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5