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दूसरा प्रश्नः अस्तित्व को स्वीकार कर लिया तो शब्द क्यों? उपदेश क्यों? समर्पण है तो विरोध की व्याख्या क्यों? जीवन की खोज को अधूरा छोड़कर संन्यास में प्रवेश क्या पलायन नहीं? क्या कायरता नहीं?
| हली बात, 'अस्तित्व को स्वीकार कर
| लिया तो शब्द क्यों?' तुमसे कहा किसने कि शब्द अस्तित्व नहीं है? जितना शून्य अस्तित्व है, उतना ही शब्द भी अस्तित्व है। चुप रहने में जितना यथार्थ है, उतना ही बोलने में भी यथार्थ है। बीज में जितना संत्य छिपा है, उतना ही फूल के प्रकट हो जाने में भी छिपा है।
झेन कवि बासो ने कहा है, फूल बोलते नहीं। मुझे कभी झंझट नहीं होती किसी को गलत कहने में, लेकिन बासो को गलत कहने में मुझे भी पीड़ा होती है। बासो से मेरा लगाव है। लेकिन फिर भी मैं कहना चाहता हूं कि फूल भी बोलते हैं। बासो कहता है, फूल बोलते नहीं; मैं तुमसे कहना चाहता हूं, फूल भी बोलते हैं। बासो फूलों की भाषा नहीं समझता रहा होगा। पूछो मधुमाखी से, फूल बोलते हैं या नहीं? मीलों दूर तक खबर पहुंच जाती है। सुगंध, सुवास, मिठास हवा में तैर जाती है। तार खिंच जाते हैं। निमंत्रणों के जाल फैल जाते हैं। मीलों दूर के मधुछत्ते पर खबर पहुंच जाती है, फूल खिल गया है। भाग मच जाती है, दौड़ मच जाती है, मधुमक्खियां चलीं कतारबद्ध! तितलियों से पूछो, फूल बोलते हैं या नहीं? सूरज की किरणों से पूछो, फूल बोलते हैं या नहीं? अपने नासापुटों से पूछो, फूल बोलते हैं या नहीं? अपनी आंखों से पूछो, फूल के रंग, गंध से पूछो। ____ फूल भी बोलते हैं। उनकी भाषा मनुष्य की भाषा नहीं। हो भी क्यों? फूल की भाषा फूल की भाषा है। अगर फूल सोचते होंगे, तो वे सोचते, मनुष्य बोलते ही नहीं। क्योंकि उनकी भाषा में तो नहीं बोलते। फूल भी बोलते हैं। यह अस्तित्व बहुत मुखर है। सब कुछ बोल रहा है।
तुम पूछते हो, 'अस्तित्व को स्वीकार कर लिया तो शब्द क्यों?'
अस्तित्व को स्वीकार कर लिया तो शब्द से बचने का उपाय कहां? शून्य भी अपना, शब्द भी अपना। मौन भी अपना, मुखरता भी अपनी। अस्तित्व तो सारे विरोधों का सम्मिलन है। लेकिन आदमी हमेशा चुनाव में लगा रहता है। या तो शब्द, तो कभी शून्य को न चुनेगा। अब शून्य को चुन लिया, तो अब शब्द से घबड़ायेगा। कुछ हैं जो बोले ही चले जाते हैं और कुछ हैं जिन ने कसम खा ली है कि नहीं बोलेंगे। ये दोनों ही गलत हैं। दोनों ने ही हठ किया। दोनों ने आग्रह कर लिया है।
मेरा कोई आग्रह नहीं है। जब जैसी प्रभु की मर्जी! जब बोलना चाहे, बोले। जब चुप रहना चाहे, चुप रहे। तुम्हारा आग्रह, तो तुम ही मौजूद रह जाओगे। __ अब तुम पूछते हो, 'उपदेश क्यों?'
उपदेश क्यों नहीं? समझना। तुम सोचते हो, उपदेश दिया जाता है, तो तुम गलती में हो। जो देते हैं, वे वस्तुतः उपदेष्टा नहीं। उपदेश होता है। जैन शास्त्रों में बड़ा ठीक वचन है। महावीर बोले, ऐसा जैन शास्त्र नहीं कहते। जैन शास्त्र कहते हैं : महावीर से वाणी झरी। यह बात ठीक है। यह बात पकड़ आती है। बोले, ऐसा नहीं; क्योंकि बोले में ऐसा लगता है जैसे कुछ किया। तो जैन शास्त्र ठीक
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5