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________________ और हो जाये! जो भी हुआ है, जो भी हो रहा है, जो भी होगा, उसी से है। तुम नाहक बीच में आ जाते हो। लहरों को देखो सागर में। अलग-अलग मालूम पड़ती हैं। अगर लहरों को भी थोड़ी बुद्धि आ जाये तुम्हारे जैसी, तो प्रत्येक लहर पूछने लगेगी कि मैं सागर के साथ एक कैसे हो जाऊं? लहर सागर के साथ एक है। लहर सागर से अलग कैसे हो सकती है, पहले यह तो पूछो! लहर सागर से अलग होकर जी कैसे सकेगी? कभी तुमने लहर को सागर से अलग करके देखा? बचेगी कैसे? लहर को भी बद्धि आ जाये और लहर भी सत्संग करने लगे और साध-संतों के पास बैठने लगे. तो पूछेगी कि बात तो समझ में आ गई, अब इतना और बता दें कि सागर से एक कैसे हो जाऊं? तो क्या कहेंगे लहर को हम कि पागल, तू एक है ही! तेरी यह भ्रांति है कि तू अलग है। अलग तू कभी हुई नहीं। और जब कभी त गंदी थी तो सागर ही गंदा था। और जब कभी तझमें मिट्टी उठी थी. सागर से ही उठी थी। और जब कभी तुझमें सूखे पत्ते तैरे थे, तो सागर में ही तैरे थे। जब कभी तू बड़ी होकर उठी थी कि बड़े जहाजों को डुबो दे, तब भी सागर ही उठा था। और जब तू छोटी-सी होकर उठी थी, तब भी सागर ही उठा था। छोटी हो कि बड़ी, गंदी हो कि उजली, संदर हो कि कुरूप, हर हाल, हर स्थिति में सागर ही तेरे भीतर बोला था, सागर ही तेरे भीतर प्रकट हुआ था; अन्यथा कोई उपाय नहीं है। __इस विराट चैतन्य के सागर में हम लहरें हैं। हमारा अलग होना नहीं है। इसलिए तुम यह तो पूछो ही मत कि कैसे हम एक हो जायें, क्योंकि तुम अलग कभी हुए नहीं। और यह तुम पूछो ही मत कि कौन-से निर्णय हमारे हैं और कौन-से उसके हैं। सभी निर्णय उसके हैं। इस अनुभव, इस प्रतीति, इस साक्षात्कार का नाम ही समर्पण है। बांसुरी बननी नहीं पड़ती, बांसुरी तुम हो। इतनी याद भर करनी है। स्वामी अरविंद योगी ने कबीर का एक प्यारा पद भेजा है। इस प्रश्न के उत्तर में उसे याद रखना धोबिया जल बिच मरत पियासा जल में ठाढ़ पीवे नहीं मूरख जल है अच्छा-खासा अपने घर का मर्म न जाने करे धुबियन की आसा छिन में धोबिया रोवे-धोवे छिन में रहत उदासा आप पैर करम की रस्सी आपन धरहि फांसा सच्चा साबुन ले नहीं मूरख है संतों के पासा दाग पुराना छूटत नहीं धोवे बारह मासा एक रत्ती को जोर लगावत छोड़ दियो भरि मासा कहत कबीर सुनो भई साधो धोबिया जल बिच मरत पियासा तुम पूछ रहे हो, प्यास कैसे बुझायें ? 'धोबिया जल बिच प्यासा।' और तुम जहां खड़े हो, चारों तरफ जल-ही-जल है। 'जल है अच्छा-खासा, धोबिया जल बिच प्यासा।' प्रश्न गलत हो, तो सही उत्तर की कोई संभावना नहीं। तुम्हारा यह प्रश्न गलत है। और जो तुम्हें मार्ग दिलानेवाले, दिखानेवाले मिल जायेंगे, जरा सावधान रहना! क्योंकि ऐसे लोग हैं जो तुम्हें बताएंगे • कि हां, यह रही तरकीब। इस भांति तुम प्रभु की बांसुरी बन सकते हो। ऐसे लोग हैं जो तैयार बैठे हैं कि तुम आओ, पूछो, और वे बता देंगे कि ये रहे विधि, उपाय, मार्ग; इस भांति प्रभु से मिलन हो सकता है। लेकिन मैं तुम्हारे किसी गलत प्रश्न का उत्तर देने में उत्सुक नहीं हूं। तुम्हारा प्रश्न गलत है, 244 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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