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कोई पता नहीं। आंतरिक स्वतंत्रता का पता चल जाये, बंधन गिर जाते हैं। बांधा हमें किसी और ने नहीं है इसलिए लड़ने का कोई सवाल नहीं है। बंधे हैं हम क्योंकि हमने स्वयं को जाना नहीं। हमने अपने को ही बांधा है। किसी ने हमें बांधा नहीं है। यह हमारी धारणा है।
तुमने कभी देखा किसी सम्मोहनविद को किसी व्यक्ति को सम्मोहित करते? सम्मोहनविद जब किसी व्यक्ति को सम्मोहित कर देता है तो उससे जैसा कह देता है, सम्मोहित व्यक्ति वैसा ही मान लेता है। अगर पुरुष को कहे कि तू स्त्री हो गया, अब तू चल मंच पर, तो वह स्त्री की तरह चलता है। कठिन है स्त्री की तरह चलना। पुरुष स्त्री की तरह चले, बहुत कठिन है। क्योंकि स्त्री की तरह चलने के लिए भीतर पूरे शरीर की रचना भिन्न होनी चाहिए। गर्भाशय होना चाहिए तो ही स्त्री की तरह कोई चल सकता है। नहीं तो बहुत मुश्किल है। बड़े अभ्यास की जरूरत है।
लेकिन यह आदमी तो कभी अभ्यास किया भी नहीं। अचानक इसको सम्मोहित करके कह दिया कि तू स्त्री है, चल। और वह स्त्री की तरह चलता है। क्या हो गया?–एक मान्यता।
तुम चकित होओगे, आधुनिक मनस्विद सम्मोहन पर बड़ी खोजें कर रहे हैं। अगर सम्मोहित व्यक्ति के हाथ में साधारण-सा कंकड़ उठाकर रख दिया जाये, ठंडा कंकड़, और कह दिया जाये अंगारा है तो हाथ में फफोला आ जाता है। अंगारा तो रखा नहीं, फफोला आता कैसे? ___ इसी सूत्र के आधार पर लंका में बौद्ध भिक्षु अंगार पर चलते हैं। इससे उल्टा सूत्र। अगर तुमने मान रखा है कि अंगार नहीं जलायेगा, तो नहीं जला सकेगा। तुम्हारी मान्यता चीन की दीवाल बन जाती है। तमने अगर मान लिया है कि कंकड़ भी अंगारा है तो कंकड़ से भी फफोला आ जाता है। तुम्हारी मान्यता!
सूफियों में कहानी है कि बगदाद के बाहर खलीफा उमर शिकार को गया था। और उसने एक बड़े अंधड़ की तरह एक काली छाया को आते देखा। तो उसने रोका। उसने कहा, रुक! मैं खलीफा . उमर हूं। और बगदाद में प्रवेश के पहले मेरी आज्ञा चाहिए। तू है कौन ? उसने कहा, क्षमा करें मैं मृत्यु हूं। और पांच हजार लोगों को मरना है बगदाद में। और मृत्यु किसी की आज्ञा नहीं मानती। खलीफा आप होंगे। क्षमा करें। पांच हजार लोग मरने को हैं, इतना आपको कह देती हूं। ___ महाप्लेग फैली। और कहते हैं, पचास हजार लोग मरे। खलीफा बहुत नाराज हुआ। वह बाहर राह देखता रहा। जब प्लेग खतम होने लगी और गांव से बीमारी समाप्त होने लगी तो वह बाहर आकर खड़ा रहा। फिर अंधड़ की तरह निकली मौत और उसने पूछा, रुक। आज्ञा न मान, ठीक; लेकिन मौत होकर झूठ बोलना कब से सीखा? तूने कहा, पांच हजार मारने हैं, पचास हजार मर गये। उसने कहा, क्षमा करें मैंने पांच हजार ही मारे। बाकी पैंतालीस हजार अपने ही भय से मर गये। मैंने उनको छआ ही नहीं है।
आदमी की हजार बीमारियों में नौ सौ निन्यानबे अपनी ही पैदा की होती हैं। मान लेता है। मान लेता है तो घटना घट जाती है। तुम्हारी मान्यता छोटी-मोटी बात नहीं है। ___ नागार्जुन एक बौद्ध भिक्षु हुआ। एक युवक ने आकर नागार्जुन को कहा कि मुझे भी मुक्ति का कुछ स्वाद दें। तो नागार्जुन ने कहा, इसके पहले कि मुक्ति का स्वाद ले सको, एक सत्य को जानना पड़ेगा कि बंधन तुमने पैदा किये हैं। उसने कहा, मैं और अपने बंधन करूंगा पैदा? आप भी क्या बात
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5