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से घबड़ाओ मत। मन की मौजूदगी कुछ भी खंडित नहीं कर सकती है। शरणार्थी मत बनो, विजेता बनो। जगाओ अपने को। लेकिन आदमी सोया ही चला जाता। मरते दम तक, मौत भी आ जाती है तो भी आदमी सोया ही रहता।
___ मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन बहुत बूढ़ा हो गया। सिर गंजा हो गया तो दवाइयों की तलाश करता फिरता था कि किसी तरह बाल उग आयें। किसी महात्मा के प्रसाद से, जड़ी-बूटी के उपयोग से बामुश्किल चार बाल निकल आये-चार बाल! वह पहुंच गया नाईबाड़े हजामत बनवाने। नाई चौंका। उसने कहा, बड़े मियां, बाल गिनूं या काटूं? मुल्ला नसरुद्दीन ने बहुत शरमाते हुए कहा, काले कर दो।
चार बाल उग आये हैं उनको भी काले करने का मन है! आदमी अंत तक भी छोड़ नहीं पाता। मौत द्वार पर आ जाती है और मोह नहीं छूटता। यमदेवता द्वार पर दस्तक देने लगते हैं और कामदेवता के साथ दोस्ती नहीं छूटती। जागो! ___और दो तरह के लोग हैं दुनिया में। एक हैं, जो कामवासना में पड़े रहते हैं नाली में पड़े कीड़ों की तरह। सड़ते रहते हैं। और एक हैं जो भागते हैं। न भागनेवाला पहुंचता है और न डूबनेवाला पहुंचता है; जागनेवाला पहुंचता है। जागनेवाला जहां भी हो वहीं से पहुंच जाता है। जागने की सीढ़ी तुम जहां खड़े हो वहीं से परमात्मा से जुड़ जाती है। ___'विषयरूपी बाघ को देखकर भयभीत हुआ मनुष्य शरण की खोज में शीघ्र ही चित्त-निरोध और एकाग्रता की सिद्धि के लिए पहाड़ की गुफा में प्रवेश करता है।' ___ अगर किसी गुफा में जाना हो तो अंतर्गुफा में जाना। और चित्त-निरोध में मत पड़ना। क्योंकि जबर्दस्ती चित्त का निरोध किया जाये...जो तुम जबर्दस्ती करोगे वह कभी भी नहीं होगा। जीवन जबर्दस्ती मानता ही नहीं। जीवन तो केवल सरलता और सहजता का निमंत्रण मानता है। जबर्दस्ती . कुछ भी नहीं होता यहां। ___ तुम क्रोध को जबर्दस्ती दबा लो, मुस्कुराहट को ऊपर से पोत दो, मुखौटा ओढ़ लो खुशी का, इससे क्या फर्क पड़ता है ? भीतर क्रोध उबलता रहता है, जलता रहता है। ब्रह्मचर्य की कसमें खा लो लेकिन भीतर आंधी वासना की चलती रहती है। तुम जितना संयम करोगे ऊपर से, तुम भीतर उतना ही पाओगे उतनी ही झंझट बढ़ती जाती है। संयम से कोई झंझट से मुक्त नहीं होता। यह सस्ता उपाय काम नहीं आता। ये तरकीबें कभी काम नहीं आयीं। लेकिन ये सुगम मालूम पड़ती हैं। जबर्दस्ती आदमी को सुगम मालूम पड़ती है क्योंकि आदमी बहुत हिंसक है। दूसरों के साथ तुमने हिंसा की है। फिर जिस दिन तुम अपने को बदलने की आकांक्षा से भरते हो तो अपने साथ हिंसा शुरू कर देते हो; उसी का नाम चित्त-निरोध है। ऐसी हिंसा से कुछ भी न होगा। ____ मैंने सुना है, बरसात की एक रात में रेल के फाटक पर पार करते वक्त एक व्यक्ति दुर्घटना से बाल-बाल बच गया। उसने गुस्से में आकर रेल्वे पर मुकदमा दायर कर दिया। सिग्नल-मैन ने गवाही में कहा, मैंने तो खूब बत्ती हिलाई थी। जब मुकदमा जीतकर सिग्नल-मैन बाहर आया तो स्टेशनमास्टर ने उसकी पीठ ठोंकी और कहा, शाबास। मैंने तो समझा था कि तुम वकील की जिरह से घबड़ा जाओगे। लेकिन तुम गजब के हिम्मत के आदमी हो। तुम कहते ही गये बार-बार कि मैंने तो बत्ती
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5