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जल्दी ही यह जीवन का कारवां जा चुका होगा। राह पर केवल धूल के गुबार रह जायेंगे। अर्थी उठेगी जल्दी। और तब तुम यह न कह सकोगे कि अर्थी इत्यादि बकवास, खयाल रखना। तब तुम यह न कह सकोगे कि अर्थी इत्यादि बकवास। तब तुम यह न कह सकोगे, यह मौत इत्यादि बकवास। तब तुम्हारी बड़ी दुर्गति हो जायेगी।
इसके पहले कि समय चुक जाये, इसके पहले कि अवसर चुक जाये, कुछ कर लो, कुछ भर लो। यह झोली खाली की खाली न रह जाये। ___और मैं तुमसे कहता हूं कि अगर तुम ध्यान में उतर सको—ज्ञान में उतर जाओ सीधे, बड़ा शुभ। सौ में कोई एकाध उतर पाता है सीधा, निन्यानबे को ध्यान से ही जाना पड़ता। इसलिए तो अष्टावक्र का इतना महिमावान शास्त्र कभी भी बहुत लोगों के काम नहीं आ सका; आ नहीं सकता। वह बहुत चनिंदा लोगों के लिए है। वह सामान्य रूप से किसी काम का नहीं है। कोई अलबर्ट आइंस्टीन, कोई गौतम बुद्ध, कोई कृष्ण, कोई मोहम्मद, कोई जीसस, बस ऐसे लोगों के काम का है। इने-गिने उंगलियों पर गिने जा सकें जो, ऐसे थोड़े-से लोगों के काम का है। ___ इसलिए शास्त्र अनूठा है लेकिन बहुत लोग इस शास्त्र का शस्त्र न बना पाये कि जिससे जीवन का जाल कट जाता। जीवन का जाल काटने के लिए तुम्हें अपनी सामर्थ्य से ही चलना पड़ेगा। तुम्हें अपने को ही देखकर चलना पड़ेगा। अष्टावक्र को सुनते-सुनते तुम ज्ञान को उपलब्ध हो जाओ, तुम्हारे मन की बेचैनी मिट जाये, शुभ हुआ। फिर किसी संन्यास की कोई जरूरत नहीं। मगर कसौटी समझना मन की बेचैनी को। अगर बेचैनी न कटे तो समझ लेना कि अकेले ज्ञान से कुछ तुम्हारे लिए होनेवाला नहीं है। तुम्हें ध्यान से जाना पड़ेगा। फिर बचाव मत करना; फिर ध्यान में उतरना।
अगर ध्यान में उतर सके तो एक दिन विचार कट जायेंगे। जिस दिन विचार कट गये उस दिन ध्यान भी व्यर्थ हुआ। पैर में कांटा लग जाता है, दूसरे कांटे से हम उसे निकाल लेते हैं। फिर दोनों कांटों को फेंक देते हैं। फिर दूसरे कांटे से जो हमने निकाला है उसे सम्हालकर थोड़े ही खीसे में रख लेते हैं। उसकी पूजा थोड़े ही करते हैं कि यह कांटा बड़ा उपकारी है। त्राता! तारणहार! फिर उसको भी फेंक देते हैं। कांटा तो कांटा ही है। इसको भी पास रखने में खतरा है। यह भी गड़ सकता है। और खीसे में रखा तो छाती में गड़ेगा। दोनों को फेंक देते हैं। __विचार कांटा है, ध्यान भी कांटा है। ध्यान के कांटे से विचार के कांटे को निकाल लेते हैं, फिर दोनों को विदा कर देते हैं-नमस्कार। अगर ध्यान घट सका तो विचार और ध्यान दोनों चले जायेंगे। फिर उस दिन तुम जानोगे कि संन्यास क्या है, अध्यात्म क्या है।
जहां मन नहीं वहां अध्यात्म के फूल खिलते हैं, कमल खिलते हैं। जहां मन नहीं वहां संन्यास की सुवास बिखरती है। अभी तुम ऐसी बातें न कहो। ये बातें छोटे मुंह बड़ी बातें हो जाती हैं। अष्टावक्र कहते हैं ठीक; तुम मत कहो। तुम्हें अगर कहनी हैं तो अपने मन को जांचकर कहो। फिर बेचैनी बीच में मत लाओ; और फिर मार्गदर्शन मत पूछो।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5