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आज तक दुनिया में न तो कोई ईश्वर को सिद्ध कर पाया है और न असिद्ध कर पाया है। जो लड़ते हैं, मूढ़ हैं। आस्तिक भी और नास्तिक भी, दोनों मंदबुद्धि हैं।
अष्टावक्र कहते हैं, 'वैसे ही कोई दोनों को नहीं माननेवाला है। वही स्वस्थचित्त है । '
जो कहता है, इन झंझटों में मुझे कुछ रस नहीं है। हां और ना में मेरा कोई विवाद नहीं। पक्ष और विपक्ष में मैं पड़ता नहीं । मैं अपने में रमा हूं और मेरा रस वहां बह रहा है; बस काफी है। मैं अपने में डूबा हूं और मस्त हूं अपनी मस्ती में । मेरा गीत मुझे मिल गया। मेरा नृत्य मुझे मिल गया। मेरी रसधार बह पड़ी। अब कौन पड़ता है इस फिजूल की बकवास में कि ईश्वर है या नहीं ! यह नासमझ तय करते
रहें ।
'दुर्बुद्धि पुरुष शुद्ध अद्वैत आत्मा की भावना करते हैं लेकिन मोहवश उसे नहीं जानते हैं, इसलिए जीवन भर सुखरहित हैं । '
शुद्धमद्वयमात्मानं भावयंति कुबुद्धयः ।
न तु जानन्ति संमोहाद्यावज्जीवमनिर्वृताः । ।
'दुर्बुद्धि पुरुष शुद्ध अद्वैत आत्मा की भावना करते हैं लेकिन मोहवश उसे नहीं जानते, और जीवन भर सुखरहित रहते हैं ।'
बुद्धि की तीन संभावनायें हैं: बुद्धि, अबुद्धि, कुबुद्धि । जो अबुद्धि में है वह बड़े खतरे में नहीं है । उसकी बुद्धि सोयी हुई है, जगायी जा सकती है। जो अज्ञानी है वह खतरे में नहीं है। कम से कम विनम्र होगा कि मुझे पता नहीं है। खोज करेगा ।
कुबुद्धि कौन है ? कुबुद्धि वह है, जिसे पता नहीं है और जो मानता है कि मुझे पता है। पंडित कुबुद्धि है। शास्त्र का जाननेवाला, सूचनाओं को इकट्ठा कर लेनेवाला कुबुद्धि है। अबुद्धि इतनी बुरी बात नहीं है। अबुद्धि से बुद्धि तक जाने में अड़चन नहीं है । कुबुद्धि बड़ी अड़चन में है। वह अबुद्धि
है अभी, और सोचता है कि बुद्धि में पहुंच गया — यह उसकी कुबुद्धि है। अज्ञानी है और मान लेता है कि ज्ञानी हो गया हूं। बीमार है और सोचता है कि स्वस्थ हूं, इसलिए औषधि भी नहीं लेता। और चिकित्सक के पास भी नहीं जाता। जाये क्यों? किसलिए जाये ? इसलिए सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति कुबुद्धि की है। और तुम ध्यान रखना, अधिक लोग कुबुद्धि की स्थिति में हैं। इसलिए परमात्मा से मिलन नहीं हो पाता, सत्य की खोज नहीं हो पाती।
पहले तो कुबुद्धि को लौटना पड़ता है अबुद्धि में । अबुद्धि से रास्ता जाता है। इसलिए मेरी चेष्टा यहां है कि तुम्हें जो भी आता है वह विस्मरण हो जाये। तुमने जो-जो पाठ सीख लिये हैं वे ' भूल जायें तुम्हारा ज्ञान का चोगा उतर जाये। तुम्हारी यह ज्ञान की झूठी पर्त टूट जाये । तुम्हें स्मरण आ जाये कि तुम्हें पता नहीं है । फिर यात्रा शुरू होती है; फिर तुम साफ हुए; फिर तुम बच्चे की भांति हो ।
कुछ बुरा नहीं है अबुद्धि में। अबुद्धि का इतना ही मतलब है कि मुझे पता नहीं और मैं तैयार हूं यात्रा पर जाने को । कुबुद्धि का अर्थ है कि पता तो नहीं है, भीतर तो मालूम है पता नहीं है, क्योंकि खुद को कैसे धोखा दोगे? लेकिन ऊपर से अहंकार स्वीकार नहीं करने देता कि मुझे पता नहीं है । अहंकार कहता है, पता है। मुझे और पता न हो ? यह हो कैसे सकता है ? अगर मुझे पता नहीं तो फिर किसी को पता नहीं ।
दृश्य से द्रष्टा में छलांग
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