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मेरे खिलाफ कह दी। मैं उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कह रहा हूं। मैं तुमसे यह कहता हूं कि तुम न दौलतराम हो, न खोजी हो । नाम यह नाम तो सब दिया हुआ है। तुम अनाम हो ।
तुम्हारा क्या लेना-देना !
अब अगर दौलतराम खोजी इस तरह सुनें कि अनाम हूं मैं, तो वे भी हंसेंगे। मगर वे पकड़कर सुन रहे हैं कि अच्छा, तो अब मेरे नाम के खिलाफ फिर कह दिया कुछ! तो उनको लग रहा होगा, जैसे मैं उनका दुश्मन हूं। आखिर उनके नाम के खिलाफ क्यों हूं ? खिलाफ होने का मेरा कारण है; क्योंकि न तुम्हारे पास दौलत है न तुम्हारे पास राम है।
एक ही तो दौलत है दुनिया में वह राम है। राम हो तो दौलत है। राम न हो तो कुछ दौलत नहीं। और राम मिल जाये तो फिर खोज क्या करोगे ? फिर खोजी नहीं हो सकते। राम जब तक नहीं मिला तब तक खोजी हो ।
उनका नाम मुझे प्यारा लग गया इसलिए इतनी चर्चा कर रहा हूं। मगर वे नाराज हो सकते हैं, और बात अप्रिय लग सकती है। मगर देखने की बात है ।
अपनी बानी प्रेम की बानी घर समझे न गली समझे लगे किसी को मिश्री सी मीठी कोई नमक की डली समझे
इसकी अदा पर मर गई मीरा मोहे दास कबीर अंधरे सूर को आंखें मिल गईं खाकर इसका तीर चोट लगे तो कली समझे इसे सूली चढ़े तो अलि समझे अपनी बानी प्रेम की बानी... I
बोली यही तो बोले पपीहा घुमड़े जब घनश्याम जल जाये दीपक पे पतंगा लेकर इसी का नाम पंछी इसे असली समझे पर पिंजरा इसे नकली समझे अपनी बानी प्रेम की बानी...।
जिसने इसे ओठों पे बिठाया वह हो गया बेदीन तड़पा उमर भर ऐसे कि जैसे तड़पे बिन जल मीन बुद्धि इसे पगली समझे पर मन रस की बदली समझे अपनी बानी प्रेम की बानी... I
मस्ती के बन की है यह हिरनिया घूमे सदा निर्द्वद्व रस्सी से इसको बांधो न साधो घर में करो न बंद हम जो अरथ समझे इसका वह फूंकके बाती जली समझे अपनी बानी प्रेम की बानी... ।
अपनी बानी प्रेम की बानी
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