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— अष्टावक्र कहते हैं, इसी क्षण हो सकता। एक क्षण भी प्रतीक्षा अगर करनी पड़ती है तो किसी को दोष मत देना, तुम्हारे कारण ही करनी पड़ती है। जन्मों तक तो प्रतीक्षा का सवाल ही नहीं है; तुम्हें करना हो तो तुम्हारी मौज। हो अभी सकता है।
धन्यो विज्ञानमात्रेण मुक्तस्तिष्ठत्यविक्रियः।
क्योंकि मुक्ति में जो प्रतिष्ठा है, उसके लिए किसी क्रिया की कोई जरूरत नहीं; सिर्फ समझ, सिर्फ बोध, सिर्फ प्रज्ञान।
__ इन सूत्रों पर खूब मनन करना, सोचना, उथलना-पुथलना, चबाना, चूसना, पचाना। ये तुम्हारे रक्त-मांस-मज्जा बन जायें तो इससे अदभुत कोई शास्त्र पृथ्वी पर दूसरा नहीं है।
आज इतना ही।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5