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समझपूर्वक, बड़ी ईमानदारी से।
एक बात का समण रखना, अपने को मत मिलाना। अपनी भाषा में अनुवाद किया कि तुम चूक जाओगे। फिर तुम जो भी नतीजे लोगे वे नतीजे तुम्हारे हैं, वे ज्ञानी ने नहीं कहे। __इसलिए अष्टावक्र कहते हैं, अज्ञानी पुरुष प्रयत्न और अप्रयत्न दोनों से ही सुख को नहीं पाता है। प्रयत्न में दौड़-धूप रहती है इसलिए चूक जाता है, अप्रयत्न में आलस्य हो जाता है, गहन तंद्रा छा जाती है इसलिए चूक जाता है। दोनों के मध्य में है मार्ग।
आसान है मैंने कहा, दौड़ने में जागना। और आसान है मैंने कहा, सोने में न दौड़ना। दोनों के मध्य मार्ग है। ऐसे जागे रहो जैसा दौड़नेवाला जागता है और ऐसे विश्राम में रहो जैसे सोनेवाला रहता है, तो तुमने ज्ञानी की भाषा समझी। जागे रहो ऐसा, जैसा संसारी-कितनी भागदौड़ में लगा है! और इतने विश्राम में, इतने गहन विश्राम में, जैसा सोया हुआ आदमी। चैतन्य जागा रहे, शरीर सो जाये। मन सो जाये, चैतन्य जागा रहे। चेतना की लौ जरा भी मद्धिम न हो।
इसलिए पतंजलि ने समाधि को सुषुप्ति जैसा कहा है-नींद जैसा। लेकिन ध्यान रखना, नींद नहीं कहा है, नींद जैसा। थोड़ा-सा फर्क है। नींद जैसा कहा है, क्योंकि नींद जैसा ही गहरा विश्राम है समाधि में: लेकिन बिलकल नींद नहीं कहा है। जागने की किरण मौजूद है।
इसलिए कृष्ण गीता में कहते हैं, 'या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।'
जो सबके लिए नींद है वहां भी संयमी जागा हुआ। जहां सब भूत सो गये, जहां सब सो जाते हैं वहां भी संयमी की चेतना दीये की तरह जलती रहती है। सब तरफ अंधेरा. सब तरफ निद्रा. सब तरफ विश्राम, लेकिन अंतरतम में, गहन प्रकोष्ठ में, गहरे भीतर के मंदिर में दीया जलता रहता। दीया क्षण भर को भी नहीं बुझता।
तो दौड़ो, नहीं पाओगे। सो जाओ, नहीं पाओगे। दौड़ने से जागरण को बचा लो, सोने से विश्राम । को बचा लो। जागरण और विश्राम को जोड़ दो तो समाधि बनती है।
बद्ध ने इसीलिए कहा है, मध्य मार्ग है-मज्झिम निकाय। बीच से चलो। न बायें डोलो. न दायें डोलो। न इस अति पर जाओ, न उस अति पर जाओ। अतियों में संसार है, मध्य में निर्वाण है।
अप्रयत्नात् प्रयत्नाद्वा मूढ़ो नाप्नोति निर्वृतिम्।
अभागा है मूंढ़। मूढ़ शब्द को भी समझ लेना। मूढ़ का अर्थ बुद्धिहीन नहीं होता, मूढ़ का अर्थः । सोया-सोया आदमी, तंद्रा में डूबा आदमी, मूर्छित आदमी।
मूढ़ बुद्धिमान हो सकता है। इसलिए तुम ऐसा मत सोचना कि मूढ़ सदा बुद्ध होता है। मूढ़ बड़ा पंडित हो सकता है। अक्सर तो मूढ़ ही पंडित होते हैं। शास्त्र का बड़ा ज्ञान हो सकता है मूढ़ को। शब्द का बाहुल्य हो सकता है। सिद्धांतों का बड़ा तर्कजाल हो सकता है। तर्क-प्रवीण हो सकता है, कुशल हो सकता है विवाद में; लेकिन फिर भी मूढ़, मूढ़ है।
मूढ़ का अर्थ यहां खयाल ले लेना। मूढ़ का अर्थ मनोवैज्ञानिक अर्थों में नहीं है। जिसको मनोवैज्ञानिक इंबेसाइल कहते हैं, वह मतलब नहीं है मूढ़ से। यहां मूढ़ का बड़ा आध्यात्मिक अर्थ है। ' मूढ़ का आध्यात्मिक अर्थ है : ऐसा आदमी, जो जागा हुआ लगता है लेकिन जागा हुआ है नहीं। आभास देता है कि जानता है, और जानता नहीं। भ्रांति खुद को भी पैदा कर ली है, दूसरों को भी पैदा
| जानो और जागो!
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