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हिंसा दुखी आदमी का लक्षण है।
इसलिए तुम हिंसा को छोड़कर सुखी न हो सकोगे। तुम सुखी हो जाओ तो हिंसा छूट जायेगी। यह मौलिक दृष्टि है-आधारभूत। तुम सुखी हो जाओ तो संघर्ष छूट गया। अब संघर्ष क्या करना है! सुख तुम्हारे भीतर लहरें ले रहा है-सुख का सरोवर। किसी से झगड़ा नहीं है, इसे तुम लेकर ही आये हो। इसे कोई छीनना चाहे, छीन नहीं सकता। कोई मिटाना चाहे, मिटा नहीं सकता। इसका दूसरे से कुछ लेना-देना ही नहीं है।
तो दूसरा अर्थहीन हो गया। अब तुम जब चाहो तब आंख बंद करो, डुबकी लगा लो। जब चाहो तब तार छेड़ दो और संगीत उठे। जब चाहो तब क्षीरसागर में शय्या पर विश्राम करो। विष्णु बनो।
और भीतर तुम्हारे है। कहीं जाना नहीं है। इंच भर यात्रा नहीं करनी है। यात्रा के कारण खो रहे हो। दौड़ रहे हो इसलिए खो रहे हो। पाना हो तो दौड़ना छोड़ना होगा। जो दौड़ना छोड़ देता है उसी को हम संन्यासी कहते हैं। जो कहता है दूर नहीं है, पास है। जो कहता है, इतना निकट है कि हाथ भी बढ़ाना नहीं पड़ता। हाथ में ही रखा है। आंख ही खोलने की बात है। जरा-सी होश की चिनगारी बस काफी है। . अष्टावक्र कहते हैं, 'अज्ञानी पुरुष प्रयत्न या अप्रयत्न से सुख को प्राप्त नहीं होता।' । पहले तो प्रयत्न से सुख को प्राप्त नहीं होता। बहुत दौड़-धूप करता है। जब प्रयत्न से सुख नहीं मिलता तो अज्ञानी सोचता है, दौड़-धूप बहुत कर ली, मिलता ही नहीं; तो अब अप्रयत्न भी करके देख लें; क्योंकि ज्ञानी कहते हैं, अप्रयत्न से मिलता है। - अज्ञानी फिर भूल कर जाता। अज्ञानी ज्ञानी की भाषा समझने में भूल कर जाता है। क्योंकि अज्ञानी की भूल उसकी दृष्टि में है। तुम उसे सत्य दे दो, वह उसके हाथ में पहुंचते ही असत्य हो जाता है। तुम उसे सोना दे दो, उसने छुआ कि मिट्टी हुआ।
अज्ञानी की मौलिक दृष्टि ऐसी भ्रांत है, ऐसी विकृत है-पहले वह दौड़ता है, भागदौड़ करता है, उससे नहीं मिलता तो वह पूछने लगता है, खोजने लगता है, ज्ञानियों के पास जाता है, बुद्धपुरुषों की शरण बैठता है कि कैसे पा लूं? वहां उसे सुनाई पड़ता है कि प्रयत्न से तो मिलता ही नहीं कभी; अप्रयत्न से मिलता है।
अज्ञानी अप्रयत्न का कैसा अनुवाद करता है वह समझो। अप्रयत्न का अज्ञानी के लिए अनुवाद होता है आलस्य। वह कहता है, तो कुछ नहीं करना? वह करने की भाषा जानता है, दौड़ने की भाषा जानता है। तो वह कहता है, कुछ नहीं करना? कुछ नहीं करने से मिलता है? चलो यह तो अच्छा हुआ। तो चादर ओढ़कर सो जाता है। ___ ध्यान रखना, न तो दौड़ने से मिलता है न सोने से मिलता है; बिना दौड़े और जागे रहने से मिलता है। ये दोनों बातें खयाल में ले लेना। दौड़ने में जागना बिलकुल आसान है; क्योंकि दौड़ रहे हो, सोओगे कैसे? और सो गये तो दौड़ना छूट जाता है। वह भी आसान है। सो गये तो दौड़ोगे कैसे? अज्ञानी दो रास्ते जानता है : या तो दौड़ता है या सो जाता है। दिन भर दौड़ता है, रात भर सो जाता है। सुबह उठकर फिर दौड़ने लगता है, फिर रात सो जाता है।
ज्ञानी जब कहता है अप्रयत्न, तो वह यह नहीं कह रहा है कि तुम सो जाओ। वह आलस्य की
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जानो और जागो!
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