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उस बौद्ध भिक्षु ने कहा कि रास्ता तो मैं आज कोई पचास साल से बता रहा हूं, कोई चलता नहीं। इसलिए मैंने सोचा कि अब जाते वक्त अगर कोई जाने को राजी हो तो लेता जाऊं। अब भी कोई राजी नहीं है।
तुम कहते होः परमात्मा से मिलना है, प्यास है!
नहीं, अपनी प्यास को फिर जांचना। प्यास नहीं है, अन्यथा तुम मिल गये होते। परमात्मा और तुम्हारे बीच प्यास की कमी ही तो बाधा है। जलती प्यास ही जोड़ देती है। ज्वलंत प्यास ही पथ बन जाती है।
चौथा प्रश्नः मैं देख रहा हूं कि जब स्वामी आनंद तीर्थ अंग्रेजी में सूत्र-पाठ करते हैं तब आप उसे बड़े गौर से सुनते हैं और जब मा कृष्ण चेतना महागीता के सूत्र पढ़ती हैं, तब आप आंखें बंद कर लेते हैं। ऐसा फर्क क्यों? अंग्रेजी मैं ज्यादा जानता नहीं; सो गौर उसका राज क्या है? ऐसा तो नहीं है कि मा से सुनता हूं कि कहीं चूक न जाये, चेतना के अशुद्ध पाठ और उच्चारण के कारण और संस्कृत मैं बिलकुल नहीं जानता; सो आंख उन्हें नहीं सुनते? कृपापूर्वक इसके संबंध में बंद करके सुनने का मजा ले सकता हूं; चूकने हमें समझायें।
को कुछ है नहीं।
'चेतना' के पाठ में कोई भूल-चूक नहीं, क्योंकि मैं भूल-चूक निकाल ही नहीं सकता; जानता ही नहीं हूं।
फिर, संस्कृत कुछ ऐसी भाषा है कि आंख बंद करके ही सुननी चाहिए। वह अंतर्मुखी भाषा है। अंग्रेजी बहिर्मुखी भाषा है; वह आंख खोलकर ही सुननी चाहिए। ___ अंग्रेजी पश्चिम से आती है। पश्चिम है बहिर्मुखी। पश्चिम ने जो भी पाया है वह आंख खोलकर पाया है। ___ संस्कृत पूरब के गहन प्राणों से आती है। पूरब ने जो भी पाया है, आंख बंद करके पाया है। पश्चिम का उपाय है : आंख खोलकर देखो। पूरब का उपाय है : अगर देखना है, आंख बंद करके देखो। क्योंकि पश्चिम देखता है पर को; पूरब देखता है स्व को। दूसरे को देखना हो, आंख खुली चाहिए; स्वयं को देखना हो, खुली आंख बाधा है। स्वयं को देखना हो, आंख बंद चाहिए।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5