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कल
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हो कि यही मैं भी हो सकता हूं, दांव पर लगाना है! कंजूसी से न चलेगा, आधे-आधे न चलेगा-दांव पर पूरा ही लगाना होगा। परमात्मा के साथ होशियारी न चलेगी। ____ मैंने सुना है, इनकमटैक्स दफ्तर में एक आदमी का पत्र आया। एक अमरीकन अखबार में मैं
ही पढ़ रहा था। उस आदमी ने लिखा है कि क्षमा करें, बीस साल पहले मैंने कुछ धोखाधड़ी की थी इनकमटैक्स देने में और तब से मैं ठीक से सो नहीं पाया। तो ये पचास डॉलर भेज रहा हूं। अब क्षमा करो और मुझे सोने दो। अगर नींद न आयी तो शेष पचास डॉलर भी भेज दूंगा।
ऐसे आधे-आधे न चलेगा। किसको धोखा दे रहे हो? अब इनकमटैक्स दफ्तर को तो पता भी नहीं है, बीस साल हो गये। बात भी आयी-गई हो गई; पता तो तुम्हीं को है, लेकिन फिर भी पंचास डॉलर भेज रहे हो! और अगर नींद न आयी तो बाकी पचास भी भेज देंगे। तुम्हें तो पता ही है।
देखो, धोखा और सबको दे देना, परमात्मा को मत देना। क्योंकि परमात्मा को दिया गया धोखा फिर तुम्हें सोने न देगा, जागने भी न देगा; उठने न देगा, बैठने न देगा। यह परमात्मा को दिया गया धोखा तो अपने ही भविष्य को दिया गया धोखा है। यह तो अपने ही अंतरतम को दिया गया धोखा है। और हम सब यह धोखा देते हैं। फिर हम पूछते हैं, राह नहीं मिलती। और राह आंख के सामने है। तुम जहां खड़े हो वहीं राह है। सच तो यह है कि राहें बहुत हैं, तुम अकेले हो चलनेवाले। इतनी राहें हैं। प्रेम से चलो, ध्यान से चलो, भक्ति से चलो, ज्ञान से चलो, योग से चलो-कितनी राहें हैं! इतनी तो राहें हैं। इतने तो उपाय हैं। मगर तम चलते नहीं: तम बैठे हो चौरस्ते पर. जहां से सब रा जाती हैं।
पुराने शास्त्र कहते हैं : आदमी चौरस्ता है। जैन शास्त्रों में बड़ा महत्वपूर्ण एक सिद्धांत है आदमी के चौरस्ता होने का। कहते हैं कि देवता को भी अगर मोक्ष जाना हो तो फिर आदमी होना पड़ता है, क्योंकि आदमी चौरस्ते पर है। देवताओं ने तो एक रास्ता पकड़ लिया, स्वर्ग पहुंच गये। स्वर्ग तो । टर्मिनस है—विक्टोरिया टर्मिनस। वहां तो गाड़ी खतम। वहां से आगे जाना का कोई उपाय नहीं है, वहां तो रेल की पटरी ही खतम हो जाती है। अब अगर कहीं और जाना हो, मोक्ष जाना हो, तो लौटना पड़ेगा आदमी पर। आदमी जंक्शन है। तो अदभुत बात कहते हैं जैन शास्त्र कि देवताओं को भी अगर मोक्ष जाना हो...। किसी न किसी दिन जाना ही होगा। क्योंकि जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है, वैसे ही सुख से भी ऊब जाता है। पुनरुक्ति उबा देती है। जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है-ध्यान रखना-सुख ही सुख मिले, उससे भी ऊब जाता है। सच तो यह कि दुख-सुख दोनों मिलते रहें तो इतनी जल्दी नहीं ऊबता, थोड़ा कंधे बदलता रहता है-कभी सुख, कभी दुख-फिर स्वाद आ जाता है। दख आ गया. फिर सख की आकांक्षा आ जाती है। फिर सख आया. फिर थोडा स्वाद लिया. फिर दुख आ गया, ऐसी यात्रा चलती रहती है। लेकिन स्वर्ग में तो सुख ही सुख है। स्वर्ग में तो सभी को सुख के कारण डायबिटीज हो जाता होगा-शक्कर ही शक्कर, शक्कर ही शक्कर! तुम जरा सोचो कैसी मितली और उलटी नहीं आने लगती होगी! सुख ही सुख, शक्कर ही शक्कर! लौटकर आना पड़ता है एक दिन। ____ आदमी चौराहा है। सब रास्ते तुमसे जाते हैं-नर्क, स्वर्ग, मोक्ष, संसार! सब रास्ते तुमसे जाते हैं। और तम बैठे चौरस्ते पर पछते हो कि रास्ता कहां है? न जाना हो न जाओ, कम से कम ऐसे
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5