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________________ परमात्मा की ही छोटी-सी झलक है। तुम परमात्मा को देखो, परमात्मा में तुम्हें कोई चरित्र दिखाई पड़ता है? अगर परमात्मा में चरित्र हो तो बुरे आदमी दुनिया में जीने ही नहीं चाहिए। एक सफी फकीर बायजीद हआ। उसके गांव में एक बड़ा दष्ट आदमी था। सारा गांव उससे परेशान था और फकीरों को तो वह खास तौर से सताता था। एक दिन बायजीद ने रात प्रार्थना की कि 'हे प्रभु, किसी चीज की सीमा होती है! इतनों को उठाता है, भलों को उठा लिया, अच्छे-भले आदमी हट गये, उठ गये, नर्क चले गये, कहां गये कुछ पता नहीं—यह कहीं नहीं जाता! तू इसको भेज। इसको क्यों रोक रखा है? और भले सताये जा रहे हैं और यह बुरा फल रहा है। एक सीमा होती है।' कहते हैं, बायजीद ने आवाज सुनी हृदय के अंतर्तम से आती कि बायजीद, मैं उसे साठ साल से बर्दाश्त कर रहा हूं और जब मैं उसे बर्दाश्त कर रहा हूं तो तू शिकायत करने वाला कौन? तू भी उसे स्वीकार कर। अगर परमात्मा बुरों के विपक्ष में हो तो बुरे मिट जाने चाहिए, क्योंकि उसकी तो मर्जी काफी है। तुम कहते हो न कि उसकी बिना मर्जी के पत्ता नहीं हिलता, तो रावण कैसे सीता चुरा ले गया? पत्ता नहीं हिलता उसकी बिना मर्जी के तो रावण के पीछे उन्हीं की सांठगांठ रही, उन्हीं का इशारा रहा कि रावण चला जा। इशारा कर दिया होगा कि...। अगर उसकी बिना मर्जी के कुछ भी नहीं होता तो बुरा भी उसकी मर्जी से हो रहा है, यह तो मानोगे न ! इसको कैसे इनकार करोगे? . इससे बचने के किए धर्मों ने बड़ी तरकीबें खोजी हैं। पारसियों ने दो तत्व मान लिए हैं : एक शुभ का तत्व-परमात्मा; एक अशुभ का तत्व, वह परमात्मा का विरोधी है। वह कर रहा बुरे काम। लेकिन वह जो परमात्मा का विरोधी तत्व है, वह परमात्मा की बिना मर्जी के है? तब तो परमात्मा की सर्वशक्तिमत्ता खत्म हो गई। यह कोई तरकीब हुई बचने की? ईसाई कहते हैं : यह जो बुरा काम हो रहा है, यह शैतान कर रहा है। यही मुसलमान कहते हैं कि बुरा काम शैतान कर रहा है और भले काम परमात्मा कर रहा है। अगर तुमने चोरी की तो यह शैतान ने तुम्हारे दिमाग में रख दिया! मगर शैतान को किसने इस अस्तित्व में रखा है? चलो यह भी मान लो कि शैतान ने तुम्हारे दिमाग में रख दिया, उन्होंने यह दफ्तर उनके हाथ में छोड़ दिया होगा; लेकिन शैतान को किसने इस अस्तित्व में रखा दिया है? शैतान को रखा जाना चाहिए, परमात्मा की खोपड़ी में यह किसने रख दिया है? __ तुम इससे भाग न सकोगे। कहीं तो तुम्हें परमात्मा की आत्यंतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ेगी। तुम्हें यह मानना ही पड़ेगा कि किसी न किसी अर्थ में या तो परमात्मा सर्वशक्तिमान नहीं है, उसकी शक्ति सीमित है; और अगर उसकी शक्ति सीमित है तो पूजा इत्यादि बंद करो। फिर तो बेहतर है शैतान को ही राजी कर लो, क्योंकि हजारों-हजारों साल, करोड़ों-करोड़ों साल से शैतान अभी तक हारा नहीं है; हारेगा कभी, दिखाई नहीं पड़ता। और दुनिया में राम को मानने, परमात्मा को मानने वाला तो एक चलता होगा; शैतान को मानने वाले करोड़ों हैं। उसके अनुयायी ज्यादा हैं निश्चित। उसका धर्म बड़ा है। उसकी शक्ति भी बड़ी दिखाई पड़ती है। फिर तो कोई सार नहीं है परमात्मा की पूजा करने में। अगर सब शक्ति उसकी नहीं है तो जगत में द्वंद्व है, द्वैत है; और दूसरा 'प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला 77. -
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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