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________________ उससे अन्यथा नहीं गये - चाहे कुछ भी, कितनी ही पीड़ा भीतर झेलनी पड़ी हो। सीता को छोड़ा होगा जंगल में जिस दिन तो पीड़ा हुई होगी, लेकिन स्वयं को कुर्बान किया है समाज के लिए। इसलिए समाज ने भी खूब मूल्य चुकाया ! समाज ने भी खूब याद किया। जैसा राम का समादर है वैसा किसी का समादर नहीं है। राम ने समाज को समादर दिया, समाज ने राम को समादर दिया। मुझसे लोग पूछते हैं कि राम के प्रति लोगों का इतना भाव क्यों है? करोड़ करोड़ जनों का राम के प्रति इतना भाव क्यों है ? यह पारस्परिक है। राम ने भीड़ के प्रति समादर दिखाया, भीड़ राम के प्रति समादर दिखा रही है। यह लेन-देन है, यह सीधा हिसाब है, यह सौदा है। इसमें कुछ खूबी नहीं है। राम ने अपने को समर्पित कर दिया समाज के लिए सही और गलत की भी बात न उठाई। यह भी न पूछा कि समाज जो कहता है, वह ठीक है? ठीक की बात उठाओ तो समाज नाराज होता है। राम ने समाज को नाराज किया ही नहीं। उनमें क्रांति का कोई स्वर नहीं - मर्यादा है, व्यवस्था है, शील है। 1 तो राम की लीला में राम बहुत महत्वपूर्ण हैं, चरित्र है। ठीक ही तुलसी ने अपनी राम की कथा को नाम दिया है : रामचरितमानस । वह राम के चरित्र की कथा है। चरित्र का अर्थ होता है : लोगों की मान्यता के अनुसार । कृष्ण का कोई चरित्र नहीं है । कृष्ण तो मान्यताओं के बिलकुल विपरीत हैं; किसी मान्यता को मानने का कोई आग्रह नहीं है। राम ने अपनी पत्नी छोड़ दी जंगल में; कृष्ण दूसरे की पत्नियों को भी ले आये – जो अपनी थीं भी नहीं! तो समाज इसको क्षमा तो कर नहीं सकता। तो कृष्ण का लोग नाम भी लेते हैं - तो भी कभी श्री कृष्ण भारत की अंतर्धारा नहीं बन पाये; कभी भीड़ कृष्ण के प्रति बहुत आदर नहीं रखती। और अगर कभी तुम कृष्ण को थोड़ा-बहुत आदर भी देते हो तो वह इसीलिए कि राम उबाने वाले हैं। तो कृष्ण... राम हैं भोजन; कृष्ण चटनी हैं। थोड़ा ... । मगर रस राम में है, पुष्टि उन्हीं से लेते हो। ऐसा कृष्ण का भी थोड़ा रस ले लेते हो कभी-कभी, लेकिन ये राह के किनारे हैं, ये राह पर नहीं पड़ते। राजपथ तो राम का है। कृष्ण तो ऐसा है— पगडंडी जंगल में खो जाने वाली; कभी-कभी टहलने चले जाते हो, कभी रस भी ले लिया। लेकिन खतरनाक हैं कृष्ण ! और जो कृष्ण को मानता है, वह भी कभी ध्यानपूर्वक नहीं देखता कि कृष्ण का जीवन क्या कह रहा है। कृष्ण का जीवन कह रहा है: चरित्र से मुक्त होने की सूचना । कृष्ण के सारे जीवन की प्रस्तावना . इतनी है कि चरित्र से मुक्त हो जाओ। चरित्र बंधन है। इसको तो कौन समाज मानेगा ! कृष्ण का भक्त भी नहीं मान सकता। वह तो तुम कृष्ण की पूजा कर लेते हो घर में मोर मुकुट बांध कर और सब... लेकिन कृष्ण अगर आ जायें एक दिन अचानक तो तुम एकदम घबड़ा जाओगे। राम आयेंगे तो तुम बिलकुल स्वागत कर लोगे, पैर पर गिर पड़ोगे; कृष्ण आ जायेंगे तो तुम थोड़े दिग्भ्रमित हो जाओगे, किंकर्तव्यविमूढ़ कि अब क्या करना, इस आदमी को घर में ले चलना कि नहीं। क्योंकि तुम्हारी पत्नी को ले कर भाग जाये...। यह भरोसे का नहीं है। तुम दफ्तर जाओ और यह रास रचाने एक मूर्ति बना कर पूजा कर लेना एक बात है। लेकिन तुम थोड़ा सोचो, कृष्ण तुम्हारे घर आ तो तुम ठहरा सकोगे ? तुम कहोगे : 'महाराज आप ब्लू डायमंड में ठहर जाइये, खर्चा हम उठा लेंगे। मगर हमें बक्शो! बाल-बच्चे वाले हैं! अब आप... '' पूजा एक बात है। राम की पूजा से तुम्हारा मेल है। राम से तुम्हारा मेल है। राम परंपरागत हैं; प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला 75
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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