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________________ आंखें दीं, कोढ़ियों के पैर दबाये, भूखों को रोटी दी, ऐसा बुद्ध या महावीर करते दिखाई नहीं पड़ते। साई को लगता है कि कुछ चूक हो रही है; बुद्ध और महावीर में कुछ कमी मालूम पड़ती है ईसाई सचाई और है। सचाई यह है कि बुद्ध और महावीर के लिए करुणा किसी के प्रसंग में नहीं है; अप्रासंगिक है। करुणा भाव- दशा है। अंधा हो तो, न हो तो, आदमी हो तो, वृक्ष हो तो, पहाड़ हो पर्वत हो तो, कोई न हो तो, शून्य में भी करुणा बरसती रहेगी। जैसे कि एकांत में, निर्जन में किसी वृक्ष पर एक फूल खिला, न कोई यात्री वहां से गुजरता, न कोई प्रशंसक आता, न कोई संभावना है कि चित्रकार आएगा और चित्र बनायेगा, न कोई गायक आएगा और गीत गाएगा, लेकिन फिर भी फूल की सुरभि तो फैलती ही रहेगी, शून्य एकांत में फैलती रहेगी। बुद्ध की करुणा एकांत में खिले फूल जैसी है। कोई आये तो ठीक, न आये तो ठीक। बुद्ध की करुणा में किसी का पता-ठिकाना नहीं लिखा है; वह किसी की तरफ उन्मुख नहीं है। वह चित्त की दशा है। यह एक कदम ऊपर है। क्योंकि जो करुणा दूसरे से बंधी हो, वह करुणा बहुत गहरी नहीं है। समझो, अगर दुनिया में कोई दुख न रह जाए तो फिर ईसाई मिशनरी क्या करेगा? उसकी करुणा तिरोहित हो जायेगी। तो यह तो बड़ी उलझन की बात हुई। इसका मतलब हुआ कि तुम्हें करुणावान बनाये रखने के लिए अंधों और कोढ़ियों का होना जरूरी है। तब तो तुम्हारी करुणा बड़ी महंगी हो गई । तब तो तुम्हारी सेवा के लिए बीमार चाहिए, नहीं तो अस्पताल कैसे खोलोगे ? तब तो तुम्हारे परमात्मा तक जाने के लिए अंधे-लूले लंगड़े भिखारी सीढ़ी की तरह काम कर रहे हैं । नहीं, बुद्ध की करुणा एक कदम ऊपर है। इसका कोई संबंध किसी के दुख से नहीं है। इसका कोई संबंध ही किसी से नहीं है । यह असंबंधित है, असंग है। इसके लिए दूसरे की जरूरत ही नहीं है। इसलिए यह ऊपर है। जहां तक दूसरे की जरूरत है वहां तक हम संसार के बहुत करीब हैं; बहुत दूर नहीं गये। जहां दूसरे से संबंध मुक्त हो गया, असंग हुए, वहां हम उड़ने लगे आकाश में, पृथ्वी से नाता टूटा। मगर थोड़ी सूक्ष्म है। जीसस की दया, जीसस का प्रेम, जीसस की करुणा सभी की समझ में आ जायेगी; बिलकुल अंधे हैं उनको भी समझ में आ जाएगी। कम्युनिस्ट को भी समझ में आ सकती है। जिसके पास बोध की कोई धारणा नहीं है; जिसके पास ध्यान की कोई किरण नहीं है— उस भौतिकवादी को भी समझ में आ सकती है। क्योंकि बुद्ध की करुणा तो बड़ी अभौतिक है, और जीसस की करुणा बड़ी भौतिक है। इसलिए ईसाई मिशनरी अस्पताल बनायेगा, स्कूल खोलेगा, दवा बांटेगा । बौद्ध भिक्षु कुछ और बांटता है; वह दिखाई नहीं पड़ता। वह जरा सूक्ष्म है। वह ध्यान बांटेगा, समाधि की खबर लायेगा । वह भी आंखें खोलता है, लेकिन कहीं गहरी; बाहर की नहीं। और वह भी स्वास्थ्य के विचार को तुम तक लाता है, लेकिन आंतरिक स्वास्थ्य के, असली स्वास्थ्य के । क्योंकि वह जानता है, शरीर तो बीमार हो कि स्वस्थ, शरीर तो बीमारी ही है। इसे तुम स्वस्थ भी रखो तो वह भी तो बीमारी है। और आज नहीं कल जाएगा। मौत आने को है। इसलिए पानी पर लकीरें खींचने का कोई बहुत प्रयोजन नहीं है। लिखना ही हो कुछ तो आत्मा पर लिखो । अस्पताल क्या बनाना; बनाना हो कुछ तो मंदिर बनाओ; बनाना हो कुछ तो चैत्यालय बनाओ। ध्यान की कोई लकीरें खींचो जो साथ जायेंगी, जिनको मौत मिटा न पायेगी। तो प्रेम... क्राइस्ट जिसे प्रेम कहते हैं, वह पहली सीढ़ी है। 60 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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