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________________ कह दी। जब वह न हुआ सुनने को राजी उन्होंने उठा लिया अपना डंडा, भागे उसके पीछे ! वह तो घबड़ा कर बाहर निकल गया। उसने सोचा कि यह तो मारपीट की नौबत...। उसने सोचा न था कि ज्ञानी पुरुष ऐसा करेगा! लौट कर, डंडा रख कर वह फिर अपना लेट गये । और कोई दूसरे भक्त ने कुछ पूछा, उसका उत्तर देने लगे। चाडविक ने लिखा है : उस दिन उनका रूप देख कर मन मोह गया ! बालवत ! छोटे बच्चे जैसे ! यह भी न सोचा कि लोग क्या कहेंगे, कि आप और क्रोधित! क्रोधित हुए भी नहीं, क्योंकि क्रोध अगर हो जाये तुम्हें, तो सरकता है। घटना तो बीत जाती है, लेकिन क्रोध का धुआं एकदम से थोड़े ही चला जाता है; घड़ियों रहता है, दिनों रहता है, कभी तो वर्षों रहता है। डंडा ले कर दौड़ भी गये, वापिस आकर फिर बैठ गये । वह आदमी चला भी गया। वे फिर वैसी बात करने लगे जैसी बात चल रही थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। गुरजिएफ के संबंध में ऐसे बहुत-से उल्लेख हैं, जब वह बिलकुल पागल हो जाता और क क्षण में ऐसा ठंडा हो जाता कि भरोसा ही नहीं आता लोगों को कि एक क्षण में कोई इतना उत्तप्त हो सकता है और इतना ठंडा हो सकता है! छोटे बच्चे की भांति ! जीसस का बड़ा प्रसिद्ध उल्लेख है। वे तो कहते थे कि सभी को क्षमा करो, किसी का निर्णय न करो, दुश्मन को भी प्रेम करो। यही उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया था । और एक दिन उन्होंने अचानक कोड़ा उठा लिया मंदिर में और मंदिर में जो लोग रुपये-पैसे ब्याज पर देने का धंधा करते थे उलट दिये। और अकेले आदमी, ऐसे पागल की तरह हो गये कि भीड़ की भीड़ को बाहर खदेड़ दिया—एक आदमी ने ! शिष्य तो बड़े हैरान हुए, क्योंकि वे तो सुनते रहे थे : 'दुश्मन को प्रेम करो और जो तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे, दूसरा उसके सामने कर देना!' यह जीसस को हो क्या गया ! और जब इन सबको खदेड़ कर जीसस मंदिर के बाहर वृक्ष के नीचे आ कर बैठ गये तो वे वैसे वैसे थे, जैसे कोई रेखा नहीं खिंची। ईसाई इसको समझा नहीं पाये। ईसाइयों को बड़ी अड़चन रही है इस घटना को समझाने में; क्योंकि अगर यह सच है तो फिर ईसा के वचनों का क्या हो ? अगर वचन सच हैं तो फिर ईसा के इस व्यवहार का क्या हो ? एक वृक्ष के नीचे ईसा रुके । भूखे थे। वृक्ष पर देखा कि शायद फल लगे हों; वृक्ष पर फल नहीं थे। तो ईसा ने कहा कि देख, हम आये और तूने फल न दिये तो तू सदा-सदा के लिए बे-फल रहेगा, अब तुममें फल पैदा न होंगे। बट्रेंड रसेल ने लिखा है जीसस के खिलाफ, कि यह आदमी बातें तो करता है शांति की, लेकिन वृक्ष पर नाराज हो गया ! अब वृक्ष का क्या कसूर है ? अगर फल नहीं लगे तो वृक्ष का कोई कसूर है ? इसमें नाराज हो जाना और इतना नाराज हो जाना कि सदा के लिए कह देना अभिशाप कि कभी तुझ पर फल न लगेंगे ! यह तो बात ठीक नहीं मालूम पड़ती। सेल का तर्क भी ठीक है । रसेल ने एक किताब लिखी है : 'व्हाय आइ एम नाट ए क्रिश्चियन? मैं ईसाई क्यों नहीं ?' उसमें जो दलीलें गिनाई हैं, उनमें एक दलील यह भी है कि जीसस का व्यवहार उच्छृंखल है और जीसस के व्यवहार में शांति नहीं है, अशांति है। निश्चित ही ऐसे उल्लेख हैं जो कि कहते हैं कि अशांति मालूम होती है। इसमें तो नाराजगी क्या होनी ? लेकिन अगर तुम पूरब के मनीषियों से पूछो तो वे कहेंगे : वृक्ष पर नाराज कोई बच्चा ही हो सकता 46 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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