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________________ गुरु तो तुम्हें तुम्हारे ही भीतर पहुंचा देता है। गुरु तो गुरुद्वारा है। वह तो दरवाजा है। वह तो तुम्हें तुम्हारे ही भीतर पहुंचा देता है। ___तुम अगर सचाई की बात पूछो तो मैं तुम्हें वही दे सकता हूं जो तुम अपने को देने को राजी हो। उससे ज्यादा नहीं। तो यहां कोई आता है, परम आनंद से भर जाता है और कोई आ कर वैसे का वैसा ही लौट जाता है। जो वैसा का वैसा ही लौट जाता है, वह कहता है कि हमें तो कुछ भी न हुआ। जो परम आनंद से भर कर लौटा, वह कहता है कि बड़ी गुरु-कृपा हुई! जो आनंद से भर कर नहीं लौटा, वह समर्पण न कर पाया। जो आनंद से भर कर लौटा, वह समर्पण कर पाया। समर्पण करने से घटना घटी। मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं। इसलिए तो मैं तुमसे कहता हूं कि मेरे जाने के बाद भी तुम अगर समर्पण करोगे तो काम जारी रहेगा, क्योंकि अभी भी मैं कुछ नहीं कर रहा हूं। तो जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसीलिए तो क्राइस्ट को गये दो हजार साल हो गये, कोई फर्क नहीं पड़ता ः अब भी जो क्राइस्ट को प्रेम करता है, घटना घट जाती है। बद्ध को गये ढाई हजार साल हो गये, कोई फर्क नहीं पड़ता। जो बुद्ध की मूर्ति के सामने आज भी भावपूर्ण हो कर डूब जाता है, घटना घट जाती है। वह सोचता है कि अदभुत, ढाई हजार साल हो गये, फिर भी प्रभु तुम अभी तक कृपा किए जा रहे हो! प्रभु तब भी कृपा नहीं करते थे। तब भी बहाना थे। तब भी मूर्ति ही थे। इसे तुम समझो तो तुम्हारे पास अपनी मालकियत आ जाये। गुरु तुम्हें निर्भर नहीं बनाना चाहता। और जो बनाना चाहे वह गुरु नहीं है। गुरु तुम्हें आत्मनिर्भर करना चाहता है, तुम्हें मुक्त करना चाहता है। गुरु तुम्हें बांध ले तो दुश्मन हो गया। ____ मैं तुम्हें परिपूर्ण रूप से मुक्त करना चाहता हूं। मैं तुम्हें हर स्थिति में मुक्त करना चाहता हूं। मैं तुम्हें अपने से भी मुक्त करना चाहता हूं। तभी मुक्ति की मदिरा तुम्हारे जीवन में पूरी-पूरी उतरेगी। तो मैं फिर से दोहरा दूं। मैं तुम्हें वही देता हूं जो तुम अपने को देने को राजी हो जाते हो। लेकिन तुम अभी इतने कुशल नहीं हो कि सीधे-सीधे एक हाथ से अपने दूसरे हाथ को दे दो; पहले तुम मुझे देते हो, फिर मैं तुम्हें देता हूं। ऐसे जिस दिन तुम समर्थ हो जाओगे, तुम सीधा-सीधा दे लोगे। तुम कहोगेः आपको क्यों कष्ट दें! जब तक ऐसा नहीं हुआ है, तुम मजे से मुझे कष्ट दिए चले जाओ; मुझे कोई कष्ट नहीं हो रहा है। 406 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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