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________________ कभी सुना? कथायें हैं कि भूत-प्रेत की छाया नहीं बनती; यह आदमी भूत-प्रेत हो गया है। उसके पहले कि वह घर पहुंचता, घर खबर पहुंच गई। पत्नी तो ताला लगा कर भाग गई पड़ोस में, मित्र कन्नी काटने लगे। जहां जाये...दूकान पर पहुंचे तो लोग दूकान बंद कर लें कि बाबा, क्षमा करो। कोई भोजन देने को तैयार नहीं। अपने घर में शरण न मिले। उसने कहाः यह तो बड़ी मुश्किल हो गई। तो मैं तो सोचता था, छाया खोने से क्या बिगड़ेगा? छाया खोने से इतना बिगड़ गया! ___ और मैं तुमसे कहता हूं : तुम सिर्फ छाया ही बचे हो, आत्मा खो दी है। तो तुम्हारी दुर्गति कैसी होती होगी! छाया खोने से इतनी मुसीबत हो गई; तुमने आत्मा खो दी है और छाया ही बचा ली है। लेकिन मुसीबत ज्यादा नहीं होती मालूम पड़ती, क्योंकि जिनके बीच तुम रहते हो उन सबने भी अपनी आत्मा खो दी है। सच तो यह है, अगर तुम आत्मा पा लो तो अड़चन शुरू होगी। क्योंकि वे, जिनके पास आत्मा नहीं है, वे तत्क्षण तुम्हारे दुश्मन हो जायेंगे। अन्यथा लोग क्यों महावीर को पत्थर मारें, क्यों बुद्ध का तिरस्कार करें, क्यों मंसूर को सूली लगायें, क्यों सुकरात को जहर पिलायें, क्यों जीसस की हत्या करें! ये जिनकी आत्मायें खो गई हैं इनकी भीड़ है। जब भी कोई आत्मवान आदमी इनके बीच खड़ा होता है, इनको बड़ी बेचैनी होती है। कैसी मूढ़ता है! आत्मवान आदमी से सीखनी थी कला कि हम भी कैसे आत्मवान हो जायें। लेकिन आत्मवान आदमी को देख कर इन्हें बेचैनी होती है। इनको घबड़ाहट होती है। ये कहते हैं कि यह आदमी खड़ा है मौजूद, इससे सिद्ध होता है कि हम जो होना चाहिए थे वह नहीं हो पाये हैं। हम हार गये। इससे चिंता पैदा होती है कि अरे, हमारा जीवन व्यर्थ है! हटाओ इस आदमी को, इसकी मौजूदगी उपद्रव करती है। - तुमने सुनी एक स्त्री की बात? सुना है, एक स्त्री बड़ी कुरूप थी। वह कभी दर्पण में नहीं देखती थी। क्योंकि वह कहती थी कि सब दर्पण साजिश कर रहे हैं। दर्पण कोई उसके सामने ले आता तो दर्पण तोड़ देती थी, क्योंकि उसका खयाल था कि दर्पण उसको कुरूप बना रहे हैं। अब, दर्पण किसी को कुरूपं नहीं बनाता। दर्पण तो तुम जैसे हो वैसे बतला देता है तुम्हें, तुम्हारी छवि प्रगट कर देता है। · बुद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट दर्पण हैं। तुम्हारी कुरूपता दिखाई पड़ती है, तुम नाराज हो जाते हो। तुम दर्पण तोड़ने को तैयार हो जाते हो। तुम अपना चेहरा बदलने को राजी नहीं होते। तुम बड़े दया योग्य हो। ___ मैं तुमसे कहना चाहूंगाः जागो! धीरे-धीरे मूर्छा छोड़ो। अभी तुम उठते भी हो नींद-नींद में, चलते भी हो नींद-नींद में, बात भी कर लेते हो, उत्तर भी दे देते हो। लेकिन तुमने कभी खयाल किया कि तुम होश से कर रहे हो यह? कोई तुम्हें गाली देता है तो तुम फिर होशपूर्वक क्रोध करते हो या क्रोध हो जाता है? जैसे किसी ने बटन दबा दी, बिजली की बटन दबा दी, पंखा चल पड़ा। पंखा यांत्रिक है। किसी ने तुम्हारी बटन दबा दी और तुम क्रोधित हो गये। यह भी यांत्रिक है। यह भी यंत्रवत है। इसमें तुम्हें होश कहां, तुम्हारा होश कहां, तुम्हारी जागृति कहां? __ जब कोई गाली दे, तब शांत खड़े हो जाना। एक क्षण सोचना, ध्यान करना। हो सकता है गाली ठीक ही हो। तो धन्यवाद दे देना आदमी को। या हो सकता है गाली बिलकुल गलत हो, तब हंस कर अपने रास्ते पर चले जाना, क्योंकि गलत से क्या झगड़ना! या तो ठीक होगी गाली या गलत होगी प्रभ-मंदिर यह देहरी 403
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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