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________________ यह तो होना ही है। इसमें भय करने से प्रयोजन क्या है? ____ सुकरात मरता था, एक शिष्य ने पूछा, आप भयभीत नहीं हैं? तो सुकरात ने आंख खोली और उसने कहा, भय? दो ही संभावनायें हैं : या तो जैसा नास्तिक कहते हैं कि मैं मर जाऊंगा, बिलकुल मर जाऊंगा, कुछ भी न बचेगा; जब कुछ बचेगा ही नहीं तो भय किसका, किसको होगा? बात खतम हो गई। सुकरात न रहा, खतम हो गई बात। रह कर भी क्या करना था? इतने दिन रहे तो भी क्या कर लिया? जन्म के पहले भी नहीं थे, तब तो कोई तकलीफ नहीं थी; मौत के बाद फिर नहीं हो जायेंगे, तो तकलीफ क्या है? तुमसे मैं पूछता हूं : जन्म के पहले तुम नहीं थे, अगर नास्तिक सही हैं, तो जन्म के पहले तुम नहीं थे; कौन सी तकलीफ थी नहीं होने में? कोई याद आती है तकलीफ? जन्म के पहले की कोई तकलीफ याद है? जब थे ही नहीं तो तकलीफ कैसी? जब कोई था ही नहीं तो तकलीफ किसको? मरने के बाद फिर नहीं हो गये, तो अब घबड़ाना क्या है ? फिर वैसे ही होगा जैसे जन्म के पहले थे, ऐसे ही समझो। तो सुकरात ने कहाः अगर नास्तिक सही हैं, कि आत्मा समाप्त हो जायेगी मृत्यु में, कुछ भी न बचेगा, तो भय क्या? जैसे जन्म के पहले नहीं थे वैसे फिर नहीं हो गये, बात खतम हो गई, आई-गई हो गई। एक लहर उठी. खो गई। या हो सकता है. आस्तिक सही हों। अगर आस्तिक सही हैं और आत्मा बचेगी, तो फिर भय कैसा? शरीर ही गया, हम तो बचे ही रहे। हम तो शरीर थे ही नहीं। . तो सुकरात ने कहाः दो ही संभावनायें हैं या तो आस्तिक सही हों या नास्तिक सही हों। और सुकरात बड़ा हिम्मत का आदमी है। वह यह भी नहीं कहता है कि मैं मानता हूं इसमें कौन सही है। वह कहता है : मुझे कुछ पता नहीं है। मगर भय कैसा? दो में से कोई एक ही ठीक हो सकता है। दोनों हालत में भय व्यर्थ है। तो अगर शरीर का जाने का भय लगता है तो क्या डर है? शरीर तो जायेगा। एक फकीर के दो बेटे थे, मर गये एक दुर्घटना में। जब वह फकीर घर आया नमाज पढ़ कर मस्जिद से तो उसकी पत्नी ने कहा, पहले तुम भोजन कर लो, फिर तुम्हें एक बात कहनी है। उसने भोजन कर लिया। लेकिन वह बार-बार पूछने लगा, बेटे कहां हैं? क्योंकि उसको बेटों से बड़ा लगाव था। जुड़वां बेटे थे। और कहने लगा कि वे सदा मस्जिद पहुंच जाते थे, आज मस्जिद भी नहीं पहुंचे, बात क्या है? पत्नी ने कहा, पीछे बताऊंगी, आप पहले भोजन कर लें। उसने भोजन कर लिया, हाथ-पैर धो कर बैठ गया। तो उसने कहा, अब दूसरे कमरे में आयें, लेकिन पहले एक बात कहनी है। बीस साल पहले एक आदमी कुछ हीरे-जवाहरात मेरे पास रख गया था अमानत के तौर पर, आज वापिस मांगने आया, तो मैं उसे लौटा दूं? फकीर ने कहा, यह भी कोई पूछने की बात है? जो उसकी है चीज, उसे लौटा दो। इसमें मेरे पूछने के लिए रुकने की जरूरत ही न थी। तुमने लौटाए क्यों न? क्या कुछ मन में बेईमानी आ गई? उसने कहा, बस फिर सब ठीक है, अंदर आयें। उसने चादर उठा दी, दोनों लड़के मुर्दा पड़े थे। फकीर तो सन्नाटे में आ गया। लेकिन तब समझा बात। बीस साल पहले दोनों पैदा हुए थे; जिसने दिया था, वह आज वापिस ले गया। हंसने लगा। उसने पत्नी से कहा, तूने ठीक किया। तूने यह बात संन्यास-सहज होने की प्रक्रिया 355
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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