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'क्या आप जानबूझ कर ऐसा करते हैं और इसके पीछे क्या कोई राज है?'
नहीं, जानबूझ कर नहीं करता हूं; ऐसा हो रहा है। ऐसा होते देखता हूं। और यही सहज मालूम होता है। इसमें कोई असहजता नहीं है। पीछे से क्या लीपा-पोती करनी? जो क्षण जैसा था वैसा था। उस क्षण के संबंध में मेरा वक्तव्य गवाही रहेगा। मेरा कोई वक्तव्य मेरे संबंध में झूठ नहीं कहेगा। ___हां, तुम्हारी तकलीफ मैं समझता हूं कि तुम्हें अड़चन होती है समझने में; लेकिन यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं। यह उलझन तुम्हारी है, इसमें तुम कुछ रास्ता निकालो। तुम्हारी उलझन को बचाने के लिए मैं सच को झूठ करूं, झूठ को सच करूं, यह मुझसे न हो सकेगा।
'और क्या यह खतरा नहीं है कि कालांतर में लोग संदेह करें कि सारे वक्तव्य एक ही महापुरुष के हैं?'
हर्जा क्या है? अगर लोग ऐसे ही समझेंगे कि बहुत-से लोगों की ये बातें हो सकती हैं, एक की नहीं हो सकतीं, तो हर्जा क्या है? यह लोग जानें। और पीछे का हम क्या हिसाब रखें आज से कि कल लोग क्या सोचेंगे! भविष्य को हम अज्ञात ही रहने दें। ___मैं जानता हूं कि मेरे वक्तव्य अड़चन देंगे। कोई व्यक्ति जो मेरे वक्तव्यों के आधार पर पी एच. डी. लेना चाहेगा, इतनी आसानी से न ले पायेगा। लाख सिर मारेगा तो भी उसकी सूझ-बूझ में न पड़ेगा। यह कोई नहर नहीं है जो मैंने तुमसे कही; यह उद्दाम वेग में बाढ़ में आई हुई नदी है, इसको तुम पी एच. डी. के हिसाब से न बांध सकोगे। लेकिन पी एच. डी. मिले किसी को, न मिले, इसकी परेशानी में क्यों लूं?
एक जगह आधुनिक कला की प्रदर्शनी हो रही थी। अब आधुनिक कला तो आप जानते हैं, कुछ भी समझ में नहीं आता।
कहते हैं एक बार पिकासो का चित्र उल्टा टांग दिया किसी ने प्रदर्शनी में, तो वह उल्टा ही टंगा रहा और लोग उसकी प्रशंसा करते रहे और आलोचकों ने उसकी प्रशंसा में लेख लिख मारे। और जब पिकासो पहुंचा उसने कहाः किसने यह बदतमीजी की, मेरा चित्र उल्टा लटका हुआ है! ' मगर उल्टा-सीधे का पता लगाना मुश्किल है।
एक बार पिकासो के पास एक आदमी आया, वह दो पेंटिंग खरीदना चाहता था और एक ही तैयार थी। वह अरबपति आदमी था। उसने कहा, जो पैसे चाहिए, लेकिन अभी इसी वक्त...। पिकासो भीतर गया, उसने कैंची से पेंटिंग के दो टुकड़े कर दिए, दो पेंटिंग हो गईं। अब पिकासो की पेंटिंग ऐसी है कि तुम चार टुकड़े भी कर दो तो भी पता नहीं चलेगा कि बीच से काटी कि क्या हुआ।
एक बार तो कहते हैं एक आदमी ने अपना पोर्टेट बनवाया। पिकासो ने बनाया। कई हजार डालर मांगे। उस आदमी ने कहा, और सब तो ठीक है, लेकिन मेरी नाक ठीक नहीं। पिकासो ने कहा, अच्छा ठीक है, झंझट तो बहुत होगी, लेकिन हम ठीक कर देंगे। जब वह आदमी चला गया तो पिकासो बड़ा उदास बैठा है। उसकी प्रेयसी ने पूछा, इतने उदास क्यों हो? उसने कहा कि मुझे ही पता नहीं कि नाक बनाई कहां है! अब कहां ठीक कर दो!
यह आधुनिक कला तो ऐसी है। तो आधुनिक चित्रों की एक प्रदर्शनी होती थी। लोग बड़े हैरान हुए, क्योंकि प्रदर्शनी में जो पुरस्कार बांटने के लिए न्यायाधीश नियुक्त किया था, एक ज्योतिषी...।
संन्यास-सहज होने की प्रक्रिया
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