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________________ जिंदगी से ऊब कर नहीं, डर कर नहीं, किसी पुण्य पुरस्कार के लिए नहीं - जंगल का आवाहन! वह जंगल की हरियाली किसी को बुलाती है ! जंगल का रस किसी को खींचता है। 'कृष्ण मोहम्मद' यहां पीछे बैठे हैं। वे मिलानो में थे, बड़ी नौकरी पर थे, छोड़ कर आ गये। भगोड़े नहीं हैं, जीवन से भागे नहीं हैं। तो जब यहां आये तो जंगल जा रहे थे, इरादा था कि कहीं पंचगनी में दूर जा कर कुटी बना कर बैठ जायेंगे। इधर बीच में उन्हें मैं मिल गया तो मैंने कहा: 'कहां जाते हो ?' तो वे राजी हो गये । भगोड़े होते तो राजी न होते। उन्होंने कहा: 'ठीक है, आप आज्ञा देते हैं तो यहीं रह जाऊंगा।' भगोड़े में तो जिद्द होती है। शांति की तलाश थी। मैंने कहा: 'पंचगनी पर क्या होगा ? मैं यहां मौजूद हूं, इससे बड़ा पहाड़ तुम्हें मिलना मुश्किल है! तुम यहीं रुक जाओ! तुम्हारी कुटिया यहीं बना लो।' एक बार भी 'ना' न कहा । 'हां' भर दी कि ठीक, यहीं रुक जाते हैं। भागे नहीं हैं, लेकिन शांति की तरफ एक बुलावा आ गया है, एक निमंत्रण आ गया है— शांत होना है ! तो मैं यह नहीं कहता कि तुम अगर शांत हो जाओ, साक्षी बन जाओ, आनंद से भर जाओ तो जरूरी नहीं कह रहा हूं कि तुम रहोगे ही घर में। हो सकता है तुम चले जाओ; लेकिन उस जाने का अलग होगा। तब तुम कहीं भाग नहीं रहे हो, कहीं जा रहे हो । फर्क समझ लो । भगोड़ा कहीं भागता है। उसकी नजर, कहां जा रहा है, इस पर नहीं होती; कहां से जा रहा है, इस पर होती है। घर, परिवार, पत्नी, बच्चे - यह भगोड़ा है। लेकिन अगर तुम साक्षी हो तो कभी हिमालय की पुकार है। तब तुम हिमालय की तरफ जा रहे हो । तब एक अदम्य पुकार है, जिसे रोकना असंभव है। तब कोई खींचे लिए जा रहा है; तुम भाग नहीं रहे, कोई खींचे लिए जा रहा है। कोई सेतु जुड़ गया है। पुकार आ गई। स्वभाव से अगर तुम जाओ तो सौभाग्यशाली हो । भाग कर गये तो दुख पाओगे । मैं तुमसे कहता हूं : अगर तुम कभी भाग जाओ और जंगल में बैठ जाओ झाड़ के नीचे, तुम रास्ता देखोगे कि कोई आता ही नहीं। रिश्वत का रास्ता नहीं देखोगे; अब रास्ता देखोगे कि कोई भक्त आ जाये, पैर पर कुछ चढ़ा जाये । वह मतलब वही है । चढ़ौतरी कहो कि रिश्वत कहो । राह देखोगे कि कोई भक्त आ जाये, कोई मित्र आ जाये, कोई शिष्य बन जाये तो छप्पर डाल दे। अब वर्षा करीब आ रही है, अब यहां झाड़ के नीचे कैसे बैठेंगे! तुम यही सब चिंता-फिक्र में रहोगे। और देर न लगेगी, कोई न कोई बोतल लिए आ जायेगा। क्योंकि जो मांगो इस जगत में, मिल जाता है। यही तो मुश्किल है । एक दिन तुम देखोगे चले आ रहे हैं कोई बोतल लिए, क्योंकि शराब बंदी हुई जा रही है तो जिनको भी बोतलें भरनी हैं वे भी जंगल की तरफ जा रहे हैं। वहीं जंगल में बनेगी अब शराब । अब तुम कहोगे, यह भी बड़ी मुसीबत हो गई, अब ये आ गये एक सज्जन ले कर बोतल, अब न पीयो तो भी नहीं बनता, शिष्टाचारवश पीनी पड़ती है ! साधु-संन्यासी आ जायेंगे गांजा भांग लिए, तुम वह पीने लगोगे । अब साधु कहे तो इनकार भी तो करते नहीं बनता। और कोई हो तो इनकार भी कर दो; अब साधु ने चिलम ही भर कर रख दी, अब वह कहता है: 'अब एक कश तो लगा ही लो ! और बड़ा आनंद आता है ! यह तो ब्रह्मानंद है! और भगवान ने ये चीजें बनाईं क्यों ? और फिर शिव जी से ले कर अब तक सभी भक्त इनका उपयोग करते रहे हैं। तुम क्या शिव जी से भी अपने को बड़ा समझ रहे हो?' तो मन हो जाता है। भाग कर न भाग सकोगे - जागोगे तो ही...। जाग कर अगर न गये तो भी गये; गये तो 20 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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