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________________ खोलो, क्योंकि दरवाजा भीतर से तुम ही लगा गये हो। मगर उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि वे उस कमरे में से गुजर सकें जहां से भूत-प्रेत निकल रहे हैं। और उनकी घिग्घी भी बंद हो गयी। वे बोल भी न सकें। सीढ़ी लगा कर उनको नीचे उतारना पड़ा। ___ मैंने उनसे पूछा, बोलते क्यों नहीं? उन्होंने कहा, क्या खाक बोलूं? किसी तरह आधा घंटा बर्दाश्त किया है। अब भूल कर कभी नहीं यह कहूंगा कि...। भूत-प्रेत होते हैं। अपना प्रत्यक्ष अनुभव अब मुझे हुआ। मैंने उन्हें लाख समझाया कि कोई भूत-प्रेत नहीं हैं। चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। तुम्हें सब राज समझाये देता हूं। उन्होंने कहा, छोड़ो, अब इस मकान में मैं दुबारा नहीं जा सकता हूं। ___ मैं फिर गांव जब भी जाता हूं उनसे पूछता हूं कि क्या खयाल है? उन्होंने कहा कि मैंने वह बात ही छोड़ दी। तुम्हारी कल्पना तुम आरोपित कर ले सकते हो—किसी भी चीज पर आरोपित कर ले सकते हो। और विकल्पना का बड़ा बल है। तुम एक स्त्री को सुंदर मान लेते हो, बस वह सुंदर हो जाती है। तुम धन में कुछ देखने लगते हो, दिखाई पड़ने लगता है। तुम पद में कुछ लोलुप हो जाते हो, वासना वहां जुड़ जाती है, विकल्पना जाल फैलाने लगती है। तुम कितनी बार नहीं बैठे-बैठे कल्पना करने लगते हो कि सफल हो गये, चुनाव जीत गये, अब जुलूस निकल रहा है, अब लोग फूलमालाएं पहना रहे हैं! बैठे अपने-अपने घर में हैं, लेकिन यह कल्पना चल रही है। कितनी बार नहीं तुम शेखचिल्ली हो जाते हो! ज्ञानी कहते हैं कि हमारा सारा जीवन शेखचिल्लीपन है। हमने कुछ कल्पनाएं बना रखी हैं। उन कल्पनाओं को हमने इतना बल दे दिया है, अपने प्राण उनमें उंडेल दिये हैं, उन पर इतना भरोसा कर लिया है कि वे वास्तविक मालूम होती हैं। वास्तविक हैं नहीं। ___ बच्चा जब पैदा होता है तो शून्य की तरह पैदा होता है। उसे कुछ पता नहीं होता। हम उसे सिखाते हैं कि यह तेरा शरीर। मान्यता पैदा होती है। वह सीख लेता है कि यह मेरा शरीर। हम उसे सिखाते हैं चरित्र, हम उसे सिखाते हैं अहंकार कि 'देख तू किस कुल में पैदा हुआ! देख, स्कूल में प्रथम आना। इसमें कुल की प्रतिष्ठा है। सबसे आगे रहना! चरित्र बनाना, अपने को विभूषित करना सुंदर गुणों से।' धीरे-धीरे धीरे-धीरे यह निरंतर जो सम्मोहन चलता है, बच्चा भी मानने लगता है कि मैं कुछ विशिष्ट हूं, मैं कुछ हूं, विशेष घर में पैदा हुआ, विशेष परिवार में पैदा हुआ, विशेष धर्म में पैदा हुआ, विशेष देश में पैदा हुआ, राष्ट्र का गौरव हूं, और-और इस तरह की सब बातें-देह हूं, मन हूं-ये सब बातें गहन होती चली जाती हैं। __ निरंतर पुनरुक्ति से झूठ भी सच हो जाते हैं। बार-बार दोहराने से कोई भी बात सच मालूम होने लगती है। और एक बार तुम्हें सच मालूम होने लगे कि बस तुम उसके गिरफ्त में आ गये। ____ 'सब आत्मा है, ऐसा निश्चयपूर्वक जान कर शांत हुए योगी की ऐसी कल्पनाएं कि यह मैं हूं और यह मैं नहीं हूं, क्षीण हो जाती हैं।' ___तुम न तो देह हो, न तो मन हो। तुम इन दोनों के पार हो। न तुम हिंदू, न मुसलमान, न ईसाई, न जैन, न तुम स्त्री, न तुम पुरुष, न तुम भारतीय, न तुम चीनी, न तुम जर्मन। न तुम गोरे न तुम काले। न तुम जवान न तुम बूढ़े। तुम इन सबके पार हो। वह जो इन सब के पार छिपा देख रहा है-वही हो तुम। उस साक्षी के सत्य को जितना ही तुम अनुभव कर लो, जितना निश्चयपूर्वक अनुभव कर लो, 320 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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