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________________ रुचि के लोग परमात्मा को अलग-अलग नाम देते रहते हैं। लेकिन क्या इससे परमात्मा को नाम मिलते हैं? जैसे मैंने तुमसे कहा, अशोक के वृक्ष को भी पता नहीं है कि वह अशोक का वृक्ष है। और परमात्मा को भी पता नहीं है कि तुम किस-किस तरह के पागलपन उसके नाम से कर रहे हो। सूफी पुकारते हैं परमात्मा को स्त्री मान कर, प्रेयसी मान कर। कोई हैं जो परमात्मा को पिता मान कर पुकारते हैं; जैसे ईसाई। कोई कुछ मान कर पुकारते हैं, कोई कुछ मान कर पुकारते। इससे तुम्हारी रुचि भर का पता चलता है. या तम्हारी बीमारी का पता चलता है। इससे परमात्मा तक पुकार नहीं पहुंचती; क्योंकि परमात्मा न पिता है, न माता है, न भाई है, न बेटा है, न पत्नी है, न प्रेयसी है। ___ परमात्मा कोई संबंध थोड़े ही है तुम्हारे और किसी के बीच! परमात्मा तो ऐसी घड़ी है जहां तुम न बचे; जहां पुकारने वाला न बचा। तुम जब पुकार रहे हो तब तक परमात्मा तक पुकार न पहुंचेगी। जब पकारने वाला ही मिट गया. जब पकार न बची, जब कोई न बचा पुकारने को, जब गहन सन्नाटा घिर गया. जब शन्य उतरा, शन्यादष्टिः, सब शन्य भाव हो गया-तभी। हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हेराई ! जब कबीर खो गया खोजते-खोजते, तब, तब हुआ मिलन। कबीर ने कहा है : जब तक मैं था तब तक तू नहीं, अब तू है मैं नाहिं। तो तुम पुकारो विशेष-स्थिति में, रुचि में, परमात्मा को नाम दो, ये सब तुम्हारे संबंध में खबर देते हैं, इससे परमात्मा का कुछ पता नहीं चलता। ____ मगर यह उत्तर चाहा किसने था? तुम्हारे भीतर दिखता है ज्ञान खड़बड़ा रहा है, प्रगट होना चाहता है। तुम बड़ी खतरनाक स्थिति में हो। जब तुम मुझे तक नहीं बख्शे, तो दूसरों की क्या हालत कर रहे होओगे। तुम्हारे पंजे में जो पड़ जायेगा, तुम उसी के गले में घोंटने लगोगे ज्ञान। तुम जरूर अत्याचार कर रहे होओगे लोगों पर। जिन पर भी कर सकते होओगे, तुम मौका न छोड़ते होओगे। .. ध्यान रखना, ऐसा ज्ञान किसी के भी काम नहीं आता। जब तक कोई तुम्हारे पास पूछने न आया हो, तब तक मत कहना। क्योंकि जो बिना पूछे कहा जाता है, उसे कोई स्वीकार नहीं करता। जब कोई प्यास से पूंछने आता है, तब मुश्किल से लोग स्वीकार करते हैं; तब भी मुश्किल से स्वीकार करते हैं। खुद ही आये थे पूछने, तो भी बड़े झिझक से स्वीकार करते हैं, तब भी स्वीकार कर लें तो धन्यभाग! लेकिन जब तुम्हीं उनकी तलाश में घूमते हो ज्ञान ले कर कि कहीं कोई मिल जाये तो उंडेल दें ज्ञान उसके ऊपर, तब तो कोई स्वीकार करने वाला नहीं है। लोग सिर्फ नाराज होंगे। इसलिए ज्ञानियों से लोग बचते हैं कि चले आ रहे हैं पंडित जी! वे भागते हैं, कि पंडित चले आ रहे हैं, यहां से बचो, नहीं तो वे सिर खायेंगे! जो नहीं मांगा है वह देने की कोशिश कभी नहीं करना। कहा जाता है कि दुनिया में जो चीज सबसे ज्यादा दी जाती है और सबसे कम ली जाती है, वह सलाह है। सलाह इतनी दी जाती है, इतनी दी जाती है और लेता कोई भी नहीं! क्योंकि मुफ्त तुम देते हो-कौन लेगा? अकारण, बिना मांगे तुम देते हो-कौन लेगा? नहीं, इस तरह के ज्ञान को उछालते मत फिरो। कोई तुम्हारे पास जिज्ञासा करने आये कभी, उसको बता देना। कोई तुमसे पूछता हो तो उसको बता देना। लेकिन कोई पूछे न, किसी ने जिज्ञासा न की हो, तो ऐसी आतुरता मत रखो। ऐसी आतुरता खतरनाक है, हिंसात्मक है। ऐसे ज्ञानियों ने लोगों के आलसी शिरोमणि हो रहो 303
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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