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________________ सकता है। लेकिन यह अज्ञान का गहन भाव कि नहीं कुछ पता है...। उपनिषद कहते हैं : जो जानता है, जान लेना कि नहीं जानता। जो नहीं जानता, जानना कि वहीं । जानता है। और सुकरात ने कहा है : मुझे एक ही बात पता है कि मुझे कुछ भी पता नहीं। ये परम ज्ञानियों की उदघोषणाएं हैं। जानो कि जानने में जानना नहीं है। जानो कि न जानने में ही जानना है। तुम अगर मेरे पास से न जानने का यह अहोभाव लेकर विदा होओ, तो फिर तुमसे कोई भी इसे छीन न सकेगा। डाकू लूट न सकेंगे। जेबकतरे काट न सकेंगे। कोई तुम्हारे जीवन में संदेह पैदा न कर सकेगा। जहां ज्ञान है वहां संदेह की संभावना है। कोई दूसरा विपरीत ज्ञान ले आये, तो झंझट खड़ी कर देगा। तर्क ले आये, तो झंझट खड़ी कर देगा। ____ मैं तुम्हें ज्ञान नहीं दे रहा हूं। मैं तुम्हें कुछ और बहुमूल्य दे रहा हूं, जो तुम्हारी समझ में नहीं पड़ रहा है। जिस दिन जिसको समझ में पड़ जायेगा, वह उसी क्षण मुक्त हो गया। और जो अज्ञान में मुक्त हो गया, उसकी मुक्ति महान है, गहन है! उसका निर्वाण फिर छीना नहीं जा सकता। ___ तुमने क्या जाना? इसे सोचो। अब तक कुछ भी जान पाये? कुछ भी तो नहीं जान पाये। कूड़ा-कर्कट इकट्ठा कर लेते हो, सूचनाएं इकट्ठी कर लेते हो-सोचते हो जान लिया? किसी ने पूछा, यह वृक्ष जानते हो? तुमने कहाः हां, अशोक का वृक्ष है। यह कोई जानना हुआ? अशोक का वृक्ष तुमने कह दिया। अशोक के वृक्ष को पता है कि उसका नाम अशोक है ? तुमने क्या खाक जान लिया! तुमने ही नाम दे दिया, अशोक। तुमने ही बता दिया कि अशोक का वृक्ष है। तुम्हीं ने तख्ती लगा दी, तुम्हीं ने पढ़ ली। वृक्ष को भी तुम अभी तक नहीं समझा पाये कि तुम अशोक हो। तुम जानते क्या हो? -कामचलाऊ बातें, ऊपरी-ऊपरी, 'लेबिल' चिपका दिये हैं। ___ज्ञान यहां कहीं भी नहीं है। न तो शास्त्रों में ज्ञान है, न वैज्ञानिकों के पास ज्ञान है। किसी के पास ज्ञान नहीं है। ज्ञान होता ही नहीं। __ ऐसा भाव जब तुम्हारे भीतर स्पष्ट हो जायेगा, तब तुमसे कौन छीन सकेगा तुम्हारे बोध को! कैसे छीन सकेगा! तब तुम एक शाश्वतता में जीओगे—कालातीत, क्षेत्रातीत। तुम्हारी शांति प्रगाढ़ होगी। उसी क्षण उसका उदय होता है, जिसके प्रति नमन हो सकता है। वह उदय रहस्यपूर्ण है—ज्ञानपूर्ण नहीं। आलसी शिरोमणि हो रही 301
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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