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________________ अगर तुमने मुझे ठीक से समझा तो तुम जानोगे कि जानने को कुछ भी नहीं है । जानने को है क्या ? अगर तुमने ठीक से मुझे सुना और समझा, तो तुम जानने से मुक्त हो जाओगे । जानने को क्या है ? जीवन परम रहस्य है— गूढ़ रहस्य है । जानने में नहीं आता । जाना नहीं जाता। जीया जाता है। कोई समस्या नहीं है कि समाधान हो जाये। जीवन कोई प्रश्न नहीं है कि उत्तर बन जाये । मैं तुम्हें कोई उत्तर नहीं दे रहा हूं, तुम्हें सिर्फ जगा रहा हूं। तुम उत्तर पकड़ रहे हो, मैं तुम्हें जगा रहा हूं। बस वहीं चूक हुई जा रही है। तुम सुन लेते हो मुझे, तुम थोड़ा-सा संग्रह कर लिये बातों का । तुमने कहा कि बिलकुल ठीक, बात तो जंच गयी। बस यहीं चूक गये। यह कोई बात थोड़े ही है जो रहा हूं। यह तो तुम्हें थोड़ा-सा धक्के दे रहा हूं कि तुम थोड़ी आंख खोलो। तुम ज्ञानी बन कर मत लौट जाना । मैं चाह रहा हूं कि तुम समझ लो कि सब ज्ञान मिथ्या है। ज्ञान मात्र मिथ्या है। ज्ञान का अर्थ ही हुआ कि तुम अलग हो गये। जिसे तुमने जाना उससे जानने वाला अलग हो गया। भेद खड़ा हो गया। अभेद टूट गया । अद्वैत मिट गया, द्वैत हो गया । दुई आ गयी । परदा पड़ गया। बस उपद्रव शुरू हो गया। मैं तुम्हें जगा रहा हूं— उसमें, जो एक है, अद्वैत है। तुम उस महासागर में जागो ! ज्ञानी मत बनो। अन्यथा ज्ञानी बन कर जाओगे, दरवाजे से निकलते-निकलते ज्ञान हाथ से खिसक जायेगा । ज्ञान काम नहीं आयेगा । मैं तुमसे कहता हूं: अपने अज्ञान की आत्यंतिकता को स्वीकार कर लो। यह तुम्हें बड़ा कठिन लगता है। क्योंकि सब बातें अहंकार के विपरीत जाती हैं। अहंकार कहता है : कर्ता बनो। वह मैं कहता हूं, कर्ता मत बनो। अहंकार कहता है: 'चलो अच्छा तो ज्ञानी बन जाओ, पंडित तो बन सकते हैं न ! इसमें तो कुछ हर्जा नहीं ।' और मैं तुमसे कहता हूं : पंडित से ज्यादा मूढ़ कोई होता ही नहीं । पांडित्य ढ़ता को बचाने का एक उपाय है। तुम तो सहज हो जाओ। तुम तो कह दो : 'जानने को क्या है ? क्या जान सकता हूं?' आदमी ने कुछ जाना अब तक ? तुम क्या जानते हो, तुमने कभी इस पर सोचा? तुम कहते हो, यह स्त्री मेरे साथ तीस साल से रहती है, मेरी पत्नी है । तुम इसको जानते हो ? क्या जानते हो? तीस साल के बाद भी क्या जानते हो? छोड़ो, यह तो तीस साल से रहती है; तुम कितने जन्मों से अपने साथ हो, स्वयं को जानते हो ? क्या पता है तुम्हें? आईने में जो तस्वीर दिखाई पड़ती है, वही तुम अपने को समझे बैठे हो। कि बाप ने एक नाम दिया, वह तुम हो ! कौन हो तुम? वैज्ञानिक कहते हैं कि वे जानते हैं। गलत खयाल है। वैज्ञानिक से पूछो, पानी क्या है ? वह कहता है, हाइड्रोजन और आक्सीजन से मिल कर बना है। हाइड्रोजन और आक्सीजन क्या हैं? फिर अटक गये। एक तरफ से सरके थोड़े-बहुत, मगर वह कोई जानना हुआ ? पानी पर अटके थे। पानी पूछा, क्या? कहा, हाइड्रोजन, आक्सीजन। हाइड्रोजन क्या ? फिर अटक गये। फिर थोड़ा-बहुत धक्कमधुक्की की तो कहा कि ये इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन और पॉजीट्रॉन । और ये क्या ? तो वह कहता है, इनका कुछ पता नहीं चलता। तो साफ क्यों नहीं कहते कि पता नहीं चलता! ऐसा गोल-गोल जा कर, पता नहीं चलता! जब इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन का पता नहीं चलता, तो हाइड्रोजन का पता नहीं चला, और हाइड्रोजन का पता नहीं चला तो पानी का पता नहीं चला। मामला तो सब गड़बड़ हो गया। आलसी शिरोमणि हो रहो 299
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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