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________________ पहला प्रश्न : बड़ी जहमतें उठायीं तेरी बंदगी के पीछे मेरी हर खुशी मिटी है तेरी हर खुशी के पीछे मैं कहां-कहां न भटका तेरी बंदगी के पीछे! अब आगे मैं क्या करूं, यह बताने की अनुकंपा करें। क रने में भटकन है । फिर पूछते हो, आगे क्या करूं! तो मतलब हुआ: अभी भटकने से मन भरा नहीं। करना . ही भटकाव है । साक्षी बनो, कर्ता न रहो।... तो फिर मेरे पास आ कर भी कहीं पहुंचे नहीं । फिर भटकोगे । किया कि भटके। करने में भटकन है । कर्ता होने में भटकन है। लेकिन मन बिना किये नहीं मानता। वह कहता है, अब कुछ बतायें, क्या करें ? न करो तो सब हो जाये। करने की जिद्द किये बैठे हो । कर-कर के हारे नहीं ? कर-कर के क्या कर लिया है? इतना तो किया, जन्मों-जन्मों किया—परिणाम क्या है? लेकिन मन यही कहे चला जाता है कि शायद अभी तक ठीक से नहीं किया, अब ठीक से कर लें तो सब हो जाये । मन वहीं धोखा देता है। मैंने सुना, जूतों की एक दूकान पर एक ग्राहक ने जूते की जोड़ी पसंद करके कीमत पूछी तो मुल्ला नसरुद्दीन, जो वहां सेल्समैन का काम करता है, उसने दाम बतलाये - चालीस रुपया । ग्राहक ने कहा, मेरे पास दस रुपये कम हैं, बाद में दे जाऊंगा । तो नसरुद्दीन ने कहा, मालिक से कह दें, वे मान लें तो ठीक है। ग्राहक ने मालिक के पास जा कर निवेदन किया। मालिक 'ना' कहने जा ही रहा था कि नसरुद्दीन ने जूते की जोड़ी डब्बे में बांध कर ग्राहक को देते हुए कहा मालिक से : 'दे दीजिये साहब, ये दस रुपया दे जायेंगे । भरोसा रखिये।' जब ग्राहक जूता ले कर चला गया और मालिक ने पूछा, क्या तुम उसे जानते हो नसरुद्दीन ? नसरुद्दीन ने कहा: 'जानता तो नहीं, पहले कभी देखा भी नहीं । इस गांव में भी रहता है, इसका भी कुछ पक्का नहीं। लेकिन इतना जानता हूं कि वह वापिस आयेगा, दस रुपये लेकर जरूर वापिस आयेगा, आप घबड़ायें मत । क्योंकि मैंने दोनों जूते एक ही पैर के बांध दिये हैं । ' अब लाख उपाय करो, एक ही पैर के दो जूते बैठेंगे नहीं । परमात्मा ने तुम्हें जब इस संसार में भेजा है, तो एक ही पैर के दो जूते बांध दिये हैं, ताकि तुम संसार में भटक न जाओ और लौट आओ। संसार एक प्रशिक्षण है। यहां जागना सीखना है। कर-कर के इसीलिए तो कुछ परिणाम नहीं होता । कर-कर के हार ही हाथ लगती है। कर-कर के टूटते हो, पराजित होते हो। करने का फैलाव संसार
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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