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________________ कितने व्रत-उपवास किये, कितनी प्रार्थना की। अन्याय हो रहा है प्रभु अब । मुझसे जो पीछे चले थे वे पहुंच गये और मैं अभी तक नहीं पहुंचा। अब आओ ! नहीं, इतना भी भाव रह जाये तो 'मैं' मौजूद है। जब 'मैं' पूरा तल्लीन हो जाता है, तो आदमी प्रतीक्षा करता है— अपेक्षा - शून्य । वह कहता है, जब आना हो आ जाना, मुझे तुम तैयार पाओगे। मैं द्वार पर बैठा रहूंगा। तुम्हारी प्रतीक्षा भी प्रीतिकर है। तुम्हारी प्रतीक्षा है न, तो प्रीतिकर है। तुम्हारी ही तो राह देख रहा हूं, तो प्रीतिकर है। माना कि मेरे मन में बड़ी गहरी प्यास है। लेकिन प्यासा बैठा रहूंगा इस द्वार पर, दरवाजे बंद न करूंगा, रात-दिन न देखूंगा। तुम जब आओगे तब तुम मुझे तैयार पाओगे । जीसस ने कहा है अपने शिष्यों को कि एक धनपति तीर्थयात्रा को गया । उसने अपने नौकरों को कहा कि ध्यान रखना, चौबीस घंटे दरवाजे पर रहना, क्योंकि मेरा कुछ पक्का नहीं है मैं किस समय वापिस लौट आऊं । दरवाजा बंद न मिले। तो चौबीस घंटे चाकरों को, नौकरों को दरवाजा खोल कर रखना पड़ता और वहां बैठे रहना पड़ता। दो-चार दिन, पांच दिन, सात दिन बीते, उन्होंने कहा: अब यह भी हद हो गई, अभी तक तो आना नहीं हुआ ! उन्होंने कहा, छोड़ो भी, अब मजे से दरवाजा बंद करके सो जाओ। जब आयेगा तब देख लेंगे। जिस रात वे दरवाजा बंद करके सोये, वह आ गया। जीसस कहते थे : ऐसी ही भूल तुम मत कर लेना । तुम दरवाजा खोलकर बैठे रहना । जब भी आये, जब उसकी मर्जी हो– आये। जब तैयारी होगी तभी आयेगा । कहते हैं, जब शिष्य तैयार होता है, गुरु आ जाता है। जब भक्त तैयार होता है, भगवान आ जाता है। तुम्हारी तैयारी अनिवार्य रूप से फल ले आयेगी। अगर परमात्मा न आता हो तो परमात्मा पर नाराज मत होना, शिकायत मत करना। इतना ही अर्थ समझना कि तुम्हारी तल्लीनता अभी परिपूर्ण नहीं हुई है। तो और तल्लीन हो जाना, और डुबकी लगाना। और गुनगुनाना, और नाचना, और अपने को विस्मरण करना । जिस क्षण भी विस्मरण पूरा हो जाता है, उसी क्षण, तत्क्षण, एक क्षण बिना खोये परमात्मा की किरण उतर आती है। तीसरी स्थिति पैदा हो जाती है : मारिफत । धन्यभाग की स्थिति है। दूर से ही सही, प्रभु के दर्शन हुए। किरण तो आयी ! हृदय को गुदगुदाया। नये फूल खिले । स्वाद मिला। अब, अब कोई डर नहीं । अब पहली दफा साफ हुआ कि परमात्मा है। अब तक श्रद्धा थी — अंधेरे में टटोलती-सी, भटकती -सी । अब श्रद्धा परिपूर्ण हुई। अब आस्था समग्र हुई। अब तो परमात्मा भी भूल जायेगा। अब तो उसकी भी याद रखने की जरूरत न रही। हम याद तो उसी की रखते हैं जिसे भूल जाने का डर होता है। यह तुमने कभी सोचा ? एक प्रेमी विदा होता था और उसने अपनी प्रेयसी को कहा कि मुझे भूल मत जाना, याद रखना । उसने कहा: तुम पागल हुए हो ? याद रखने की जरूरत तो तब पड़ेगी जब मैं तुम्हें भूल जाऊं । याद तो कैसे करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हें भूल ही न सकूंगी। याद तो तब करनी पड़ती है जब तुम भूल भूल जाते हो, तो याद करनी पड़ती है। इसे समझना । याद करने का मतलब ही यह होता है कि तुम भूल जाते हो। कोई कहता है कि परमात्मा को याद कर रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि तुम भूल भूल जाते हो। याद क्या करोगे? अगर भूलना मिट गया तो 184 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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