________________
अष्टावक्र कह रहे हैं: तुम शरीर से तो छूट ही जाओ, परमात्मा से भी छूटो ।
संसार की तो भाग-दौड़ छोड़ ही दो, मोक्ष की दौड़ भी मन में मत रखो।
तृष्णा के समस्त रूपों को छोड़ दो।
तृष्णा मात्र को गिर जाने दो। तुम तृष्णा-मुक्त हो कर खड़े हो जाओ।
इसी क्षण परम आनंद बरस जायेगा।
बरस ही रहा है:
तुम तृष्णा की छतरी लगाये खड़े हो तो तुम नहीं भीग पाते।