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ईसाई, सिक्ख, जैन नहीं बनाता चाहता। मैं तुम्हें सिर्फ जगाना चाहता हूं— उसमें, जो तुम हो। मैं तुम्हें कुछ भी नहीं बनाना चाहता। मैं तुम्हें वही दे देना चाहता हूं जो तुम्हारा ही है और तुम्हें विस्मरण हो गया है । मैं तुम्हें वही दे देना चाहता हूं जो तुम्हारे भीतर ही पड़ा है। सिर्फ याद दिला देने की बात है। और अगर तुम मेरे स्वर में थोड़े बंध जाओ तो रास रच जाये !
तो जो भी बंध जाता है स्वर में थोड़ी देर को, वह जरूर गंगा-यमुना में पहुंच जायेगा। आंसुओं
लग जायेगी ! एक नृत्य शुरू होता है, जो बाहर से किसी को दिखाई न पड़ेगा; जो उसका ही भीतरी आंतरिक अनुभव होगा। तुम चाहोगे भी किसी और को समझाना तो समझा न पाओगे। समझाने की कोशिश भी मत करना; क्योंकि उसमें खतरा है कि दूसरा ही तुम्हें समझा देगा कि 'तुम पागल हो गये हो। कहीं ऐसा हुआ है ? सुनकर कहीं सत्य मिला है ?' मैं तुमसे कहता हूं, सुनकर ही मिल जाता है; क्योंकि खोया तो है ही नहीं । खोया होता तो सुनकर भी नहीं मिल सकता था । खोया होता तो खोजना पड़ता ।
कोई मुझसे आकर कहता है, ईश्वर को खोजना है। मैं कहता हूं, तू खोज, तुझे कभी मिलेगा नहीं। क्योंकि खोया कब, पहले यह तो पूछ ! खोया हो तो खोजा जा सकता है। खोया ही न हो तो कैसे खोजेगा ?
तो तुम्हें अगर मस्ती आने लगे और तुम्हारे भीतर कोई द्वार खुलने लगे, कोई झरोखा और तुम्हारे भीतर एक शराब ढलने लगे तो तुम किसी को कहना मत, गुपचुप पी जाना! कोई इसे समझेगा नहीं । दूसरे हंसेंगे। कहेंगे : 'सम्मोहित हो गये हो, कि पागल हो गये, कि खोया तुमने अपनी बुद्धि से हाथ अब किस चक्कर में पड़ गये हो ?' किसी से कहना मत, चुपचाप पी लेना। क्योंकि जो दूसरों का अनुभव नहीं है, वह दूसरे समझ न पायेंगे।
फगुनाये क्षण में अनगायी गजल उगी बौराये मन में गीतों की फसल उगी खुलते भिनसारे बनजारे सपन हुए नयनों की भाषा अनयारे नयन हुए श्याम साथ राधा दोपहरी सांझ हुई अब न रही बाधा, हुई हुई छुई मुई बौराये मन में गीतों की फसल उगी।
जब तुम करीब-करीब मस्ती में पागल होते हो तभी गीतों की फसल उगती है। फाये क्षण में अनगायी गजल उगी
जो तुमने अभी तक गायी नहीं, वैसी गजल प्रतीक्षा कर रही है। जो गीत तुमने अभी गुनगुनाया नहीं, वह तुम्हारे बीज में पड़ा है, फूटना चाहता है, तड़प रहा है। उसे मौका दो। अगर मेरे साथ, मेरे
बैठ तुम थोड़ा नाचलो, गुनगुना लो, तुम थोड़े डोल लो...।
श्याम साथ राधा दोपहरी सांझ हुई
अब रही बाधा, हुई हुई छुई मुई।
किसी क्षण जब तुम मेरे साथ डोल उठते हो, जिन दूर की ऊंचाइयों पर मैं तुम्हें उड़ा ले चलना
रसो वै सः
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