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प्रेम होगा। जब तुम परिपूर्ण शांत हो जाओगे तो बचेगा क्या तुम्हारे पास सिवाय प्रेम की धारा प्रेम बहेगा।
इसलिए जीसस ने कहा है, प्रेम परमात्मा है। अगर तुम प्रेमी हो तो अंततः ध्यान के अतिरिक्त बचेगा क्या? क्योंकि प्रेमी तो खो जाता है, प्रेमी तो डूब जाता है, अहंकार तो गल जाता है। जहां अहंकार गल गया और तुम डूब गये, वहां जो बच रहता है, वही तो ध्यान है, वही तो समाधि है ।
दुनिया में दो तरह के धर्म हैं - एक ध्यान के धर्म और एक प्रेम के धर्म | ध्यान के धर्म - जैसे बौद्ध, जैन प्रेम के धर्म - जैसे इस्लाम, हिंदू, ईसाई, सिक्ख । मगर अंतिम परिणाम पर कहीं से भी तुम गये... जैसे पहाड़ पर बहुत-से रास्ते होते हैं, कहीं से भी तुम चलो, शिखर पर सब मिल जाते हैं; पूरब से चढ़ो कि पश्चिम से । चढ़ते वक्त बड़ा अलग-अलग मालूम पड़ता है; कोई पूरब से चढ़ रहा है, कोई पश्चिम से चढ़ रहा है। अलग-अलग दृश्यावली, अलग-अलग घाटियां, अलग-अलग पत्थर-पहाड़ मिलते हैं, सब अलग मालूम होता है। पहुंच कर, जब शिखर पर पहुंचते हो, आत्यंतिक शिखर पर, तो एक पर ही पहुंच जाते हो। मार्ग हैं अनेक; जहां पहुंचते हो, वह एक ही है।
शुभ हुआ कि ऐसा लगता है कि प्रेम और ध्यान एक ही बात है। एक ही हैं ।
और अगर मुझे प्रेम से और ध्यान से सुना तो करने को कुछ बच नहीं जाता। सुनने हो सकता है। सुनने में न हो पाये तो करने को बचता है। अगर ठीक-ठीक सुन लिया, अगर सत्य की उदघोषणा को ठीक-ठीक सुन लिया तो उतनी उदघोषणा काफी है । कहो, क्या करने को बचता है 1. अगर ठीक से सुन लिया ? तो सुनने में ही घटना हो जाती है। क्योंकि कुछ पाना थोड़े ही है; जो पाना है वह तो मिला ही हुआ है। सिर्फ याद दिलानी है।
इसलिए संत कहते हैं, नामस्मरण ! बस उसका नाम याद आ जाये, बात खत्म हो गयी । खोया कभी है नहीं। अपने घर में ही बैठे हैं, बस खयाल बैठ गया है कि कहीं और चले गये। याद आ जाये कि अपने घर में ही बैठे हैं— बात हो गयी। जैसे सपना देख रहा है कोई आदमी, अपने घर में सोया और सपना देख रहा है कि टोकियो पहुंच गया, कि टिंबकटू पहुंच गया। आंख खुलती है, पाता अपने घर में है; न टिंबकटू है न टोकियो है। तुम कहीं गये नहीं हो; वहीं हो।
तो अगर किसी की उदघोषणा, जो जाग गया हो...। ऐसी ही दशा है, मैं तुम्हें सोया देखता अपने पास और देखता तुम करवट बदल रहे और तुम्हारी आंखें झपक रही हैं। लगता है सपना देख रहे हो, कुछ बुदबुदाते भी हो - तो मैं तुमसे कहता हूं, जागो ! अगर तुम ठीक से मेरी सुन लो और जाग जाओ तो फिर करने को और क्या बचता है! बात खत्म हो गयी।
जो सुनने में समर्थ नहीं हैं, वे पूछते हैं: 'हम क्या करें? कुछ विधि बतायें। कुछ उपाय बतायें।' मगर जो सो रहा है, उसको तुम विधि भी बता दो तो क्या करेगा? वह टिंबकटू में है, तुम उसको कहो कि घर लौट आओ तो वह कहता है : 'किस ट्रेन से लौटें ?' अब और एक झंझट है। वह घर में ही है। ‘हवाई जहाज पकड़ें कि ट्रेन से आयें कि जहाज पकड़ें ?' अब इसको क्या कहा जाये ? ट्रेन पकड़ ले? उसमें और खतरा है कि ट्रेन में बैठ कर न मालूम और कहां जायेगा ! वैसे ही टिंबकटू पहुंच गया बिना ट्रेन के । अब यह टिंबकटू से ट्रेन में सवार हो जाये तो यह कहीं और चला। यह घर तो नहीं लौट सकता ।
रसो वै सः
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