SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीता, कौन हारा! लेकिन व्यस्त हैं। जीवन हमारा एक प्रवंचना है। और प्रवंचना का मूल कारण यह है-दूसरे की मौजूदगी। अब दूसरे की मौजूदगी हटाने के दो उपाय हैं। सस्ता उपाय है कि तुम जंगल भाग जाओ, वह काम नहीं आता है। अष्टावक्र कहते हैं: एक गहरा उपाय है और वह है कि तुम अपने को पहचान लो और अपनी पहचान से तुम्हें पता चल जाये कि तुम्हीं सबके भीतर व्याप्त हो। एक ही है। यह मैं और तू में जो प्रगट हो रहा है, बायें-दायें हाथ की तरह है। ये एक ही अस्तित्व के दो पंख हैं। फिर कोई धोखा नहीं है। फिर तुम निर्दोष हो जाओगे। _ 'हंत, तत्वज्ञानी इस जगत में कभी खेद को नहीं प्राप्त होता, क्योंकि उसी एक से यह ब्रह्मांड-मंडल पूर्ण है।' फिर खेद कैसा! खेद है दूसरे से। दुख है दूसरे की मौजूदगी में; क्योंकि दूसरे की मौजूदगी हमें सीमित करती है, और दूसरे की मौजूदगी हमें झूठे व्यवहार के लिए मजबूर करती है, और दूसरे की मौजूदगी हमारी छाती पर पत्थर की तरह पड़ जाती है। - दूसरा है तो दुख है। अब दूसरे को कैसे मिटा दें! हम उपाय करते हैं जिंदगी में कई तरह से दूसरे को मिटाने के। तुम चाहे जान कर करते हो, चाहे अनजाने। तुमने देखा, पति चेष्टा करता है पत्नी को बिलकुल मिटा दे; उसका कोई अस्तित्व न रह जाये; दासी बना दे। पतियों ने समझाया है सदियों से कि हम परमेश्वर हैं, तुम दासी! पत्नियां भी कहती हैं कि ठीक। चिट्ठी वगैरह लिखती हैं तो उसमें लिखती हैं आपकी दासी। मगर उसका जो बदला लेती हैं, चौबीस घंटे पति को दिखलाती रहती हैं कि समझ लो कौन है दास! कि आप तो परमेश्वर हो, कहती यही हैं और खींचती रहती हैं टांग।' . ____ एक दिन मुल्ला और उसकी पत्नी में झगड़ा हो गया। भागी पत्नी मुल्ला के पीछे; जैसी उसकी आदत है मार दे, चीजें फेंक दे। तो वह घबड़ा कर जल्दी से बिस्तर के नीचे घुस गया। तो पत्नी ने कहा ः 'निकल बाहर, कायर कहीं का!' मुल्ला ने कहा ः 'छोड़, कौन मुझे निकाल सकता है! इस घर का मालिक मैं हूं, जहां मर्जी होगी वहां बैठेंगे। देखें कौन मुझे निकालता है!' पत्नी है जरा मोटी-तगड़ी, वह बिस्तर के नीचे घुस नहीं सकती। पत्नी की पूरी चेष्टा है पति को मिटा दे। क्यों? यह चेष्टा क्यों है? इसके पीछे बड़ा गहरा कारण है। दूसरे की मौजूदगी खतरनाक है और दूसरा है तो डर है कि कहीं वह मालिक न हो जाये; इसके पहले कि वह मालिक हो जाये, उसे गुलाम बना दो, उसकी गर्दन दबा दो! बच्चा तुम्हारे घर में पैदा होता है, कहते हो तुम बच्चे को तुम प्रेम करते हो; लेकिन मां-बाप दोनों मिल कर बच्चे को मिटाने में लग जाते हैं। जल्दी लीप-पोत कर इसको खत्म कर दो-इसके पहले कि यह उदघोषणा करे अपने स्वातंत्र्य की. अपनी स्वच्छंदता की। तम कहते हो. हम प्रेम करते हैं: लेकिन तुम्हारे प्रेम में कुछ बहुत सचाई नहीं है। तुम प्रेम के नाम पर ही जहर पिलाते हो। पत्नी भी पति से कहती है कि हमें तुमसे प्रेम है। अगर प्रेम है तो मुक्त करो! प्रेम सदा मुक्त करता है। पति भी कहता है कि मुझे तुमसे प्रेम है। यह प्रेम तो लगता है कि ओट है, इस ओट में ही जहर का सारा खेल चलता है। यह तो ऐसा लगता है कि प्रेम की शक्कर में भीतर जहर छिपाया हुआ है। गटक जाओ प्रेम के नाम से और मरो! बच्चे को हम मार डालते हैं। बाप कोशिश करता है, मां कोशिश करती है, परिवार 102 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy