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________________ तुम्हीं से मंदिर गढूंगी, तुम्हारे अंतःकरण से तेज की प्रतिमा उकेरूंगी।' स्तब्ध मुझको किरण ने अनुराग से दुलरा लिया। ये गैरिक वस्त्र तो केवल मेरे प्रेम की सूचना हैं तुम्हारे प्रेम की मेरी तरफ; मेरे प्रेम की तुम्हारी तरफ। यह तो एक गठबंधन है। जया ने पूछा है। आखिरी प्रश्नः हे प्रिय, प्यारे! प्रणाम ले लो, इन आंसुओं को मुकाम दे दो, तुमने तो भर दी है झोली, फिर भी मैं कोरी की कोरी। हे प्रिय प्यारे! | जया मेरे करीब है बहुत वर्षों से। ठीक मीत हमारे! मीरा जैसा हृदय है उसके पास; वैसा ही गीत है शीश श्रीफल चरण तुम्हारे! दबा उसके हृदय में; वैसा ही नृत्य है उसके हृदय में दबा। जब प्रगट होगा, जब वह अपनी महिमा में प्रगट होगी, तो एक दूसरी मीरा प्रगट होगी। ठीक समय की प्रतीक्षा है; कभी भी किरण उतरेगी और अंधकार कटेगा। और हिम्मतवर है-इसलिए भविष्यवाणी की जा सकती है कि होगा। . किंतु नहीं क्या यही धुंध है सदावर्त जिसमें नीरंध्र तुम्हारी करुणा बंटती रहती है दिन-याम कभी झांक जाने वाली छाया ही अंतिम भाषा, संभव नाम करुणाधाम बीजमंत्र यह सारसूत्र यह गहराई का एक यही परिमाण हमारा यही प्रणाम नियंता नहीं-साक्षी बनो 215
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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