________________
धारक, तीन गुप्तियों से पवित्र, क्रोध, मान, माया और लोभ से पराभव नहीं पाए हुए, आस्रव रहित, द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव संबंधी प्रतिबंध से रहित, प्रभु एक रुक्ष पुदगल पर दृष्टि को स्थिर करके अभी महाध्यान में स्थित हैं। उनको इस ध्यान से चलायमान करने में देवता, असुर, यक्ष, राक्षस, उरग, मनुष्य या त्रैलोक्य भी शक्तिमान् नहीं हैं।'' इस प्रकार इंद्र के वचन सुनकर उस सभा में बैठा इंद्र का सामानिक संगम नामक देव कि जो अभव्य और गाढ़ मिथ्यात्व युक्त था। वह ललाट पर भृकुटी चढ़ाकर भयंकर दिखाई देता हुआ अधरों को कंपाता हुआ, कोप से नेत्रों के रक्त करता हुआ बोला कि “हे देवेन्द्र! एक श्रमण हुए मनुष्य की इतनी क्या प्रशंसा करते हो? उसका कारण सत् असत् बोलने में स्वच्छन्दता प्रगट करने वाली आपकी प्रभुता ही है। हे सुरेन्द्र! 'यह साधु देवताओं से भी ध्यान से चलित कर सके क्या वैसा नहीं है?' ऐसा विचार क्या आप हृदय में धरते हो? और यदि धारण करते हो तो ऐसा किसलिए कहते हो? जिसके शिखर आकाश को भी अवरुद्ध कर रहे हैं और जिसके मूल रसातल को भी रुद्ध कर रहे है ऐसे सुमेरु गिरि को भी जो एक ढ़ेले की तरह भुजाओं से फेंकने में समर्थ है। कुलगिरि सहित समग्र पृथ्वी को डुबा देने में जिसका स्पष्ट वैभव है, ऐसे सागर को भी जो एक गंडूष (कुल्ले) मात्र कर देने में सक्षम हैं और अनेक पर्वतों वाली इस प्रचंड पृथ्वी को जो छत्र की भांति एक भुजा में उठा लेने की शक्ति धारण करते हैं ऐसे अतुल समृद्धिवाले, अमित पराक्रमी और इच्छानुसार सिद्धि को प्राप्त करने वाले देवताओं के आगे यह मनुष्य साधु क्या है ? मैं स्वयं ही उसको ध्यान से चलायमान करूंगा।' इस प्रकार कहकर पृथ्वीपर हाथ पछाड़कर वह सभामंडप से उठ खड़ा हुआ। उस समय 'अर्हन्त प्रभु अन्य की सहायता बिना अखंडित तप करते है, उसे यह दुर्बुद्धि जानता नहीं है ऐसा सोचकर शक्र इंद्र ने उसकी उपेक्षा की।
(गा. 160 से 185) पश्चात् वेग से उठे प्रलयकाल की अग्नि जैसा और निबिड़ मेघ जैसे प्रतापी, रौद्र आकृति युक्त कि जिसके समक्ष देखा भी न जा सके ऐसा, भय से अप्सराओं को भगाता हुआ और भयंकर विकट उरस्थल के आघात से ग्रहमंडल को भी एकत्रित करता हुआ वह पापी देव जहाँ प्रभु स्थित थे वहाँ आया। निष्कारण जगत् के बंधु और निराबाध रूप से यथास्थित रहे हुए वीर प्रभु को देखते ही उसे और अधिक द्वेष उत्पन्न हुआ। शीघ्र ही उस दुष्ट देव ने प्रभु के
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)